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तृतीय वर्ग 10-13 अध्ययन ]
मूल
10-13 अज्झयणाणि - 10-13 अध्ययन
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एवं दुम्मुवि कूवदार वि । दोण्हं वि बलदेवे पिया, धारिणी माया । 10 11 दारुए वि एवं चेव, नवरं वसुदेवे पिया, धारिणी माया ।12। एवं अणादिडी वि, वसुदेवे पिया धारिणी माया ।13। एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरसमस्स अज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते ।
संस्कृत छाया - एवं दुर्मुखोऽपि कूपदारकोऽपि । द्वयोरपि बलदेवः पिता, धारिणी माता 11011। दारुकः अपि एवमेव विशेषः वसुदेवः पिता, धारिणी माता । 12 । एवं अनादृष्टिः अपि वसुदेवः पिता धारिणी माता । 13 । एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन यावत् (मुक्ति) सम्प्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य अन्तकृद्दशानां तृतीयस्य वर्गस्य त्रयोदशस्य अध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः ।
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अन्वयार्थ - एवं दुम्मुहे वि, कूवदारए वि= इसी प्रकार दुर्मुख और कूपदारक, दोहं वि बलदेवे पिया = कुमार का वर्णन जानना चाहिये। दोनों के भी बलदेव पिता और, धारिणी माया ।10-11 । = धारिणी माता थी । 10-11, दारुए वि एवं चेव दारुक भी इसी प्रकार है, नवरं वसुदेवे पिया = विशेष यह है कि वसुदेव पिता धारिणी माया 112 और धारिणी माता है।12। एवं अणादिट्ठी वि= इसी प्रकार अनादृष्टि कुमार के भी, वसुदेवे पिया धारिणी माया 13 = वसुदेव पिता धारिणी माता है ।131, एवं खलु जम्बू ! = इस प्रकार हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने, अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अंतगडदशा, तच्चस्स वग्गस्स तेरसमस्स = सूत्र के तीसरे वर्ग के तेरहवें, अज्झयणस्स अयमठ्ठे पण्णत्ते = अध्ययन का यह भाव कहा है।
भावार्थ-जिस प्रकार प्रभु ने नवमें अध्ययन का भाव फरमाया है, उसी प्रकार दसवें 'दुर्मुख' और ग्यारहवें 'कूपदारक' का भी वर्णन समझना। फर्क इतना सा है कि दोनों के 'बलदेव' महाराज पिता और ‘धारिणी' माता थी, बाकी इनका सारा वर्णन 'सुमुख' के वर्णन के समान ही है।
इसी तरह बारहवें ‘दारुक’ और तेरहवें 'अनादृष्टि कुमार' का वर्णन भी समझना । इसमें अन्तर केवल इतना ही है कि इनके 'वसुदेव' पिता और 'धारिणी' माता थी ।
श्री सुधर्मा-“इस तरह हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृद्दशा सूत्र के तीसरे वर्ग के एक से लेकर तेरह अध्ययनों का यह भाव फरमाया है।
।। इइ 10-13 अज्झयणाणि - 10-13 अध्ययन समाप्त ।। ॥ इइ तइओ वग्गो - तीसरा वर्ग समाप्त ।।