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तृतीय वर्ग - नवाँ अध्ययन ]
83} उस समय कृष्ण वासुदेव सोमिल ब्राह्मण को मर कर गिरता हुआ देखते हैं और देखकर इस प्रकार बोलते हैं- “अरे ओ देवानुप्रियों ! यही यह अप्रार्थनीय को चाहने वाला, मृत्यु की इच्छा करने वाला तथा लज्जा एवं शोभा से रहित सोमिल ब्राह्मण है, जिसने मेरे सहोदर छोटे भाई गजसुकुमाल मुनि को असमय में ही काल का ग्रास बना डाला।” ऐसा कहकर कृष्ण वासुदेव ने सोमिल ब्राह्मण के उस शव को चांडालों के द्वारा घसीटवा कर नगर के बाहर फिंकवा दिया और उसके शव को फिंकवा कर उस शव से स्पर्श की गई सारी भूमि को पानी से धुलवाया। उस भूमि को पानी से धुलवाकर कृष्ण वासुदेव अपने राजप्रासाद में पहुँचे और अपने घर में प्रवेश किया। इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण भगवान महावीर ने, जो कि सिद्ध, बुद्ध मुक्त हुए, आठवें अङ्ग के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन का यह भाव श्रीमुख से कहा।
।। इइ अट्ठममज्झयणं-अष्टम अध्ययन समाप्त ।।
नवममज्झयणं-नवम अध्ययन
मूल- नवमस्स उक्खेवओ। एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं
बारवईए नयरीए जहा पढमे जाव विहरइ। तत्थ णं बारवईए बलदेवे नामं राया होत्था, वण्णओ। तस्स णं बलदेवस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था, वण्णओ। तए णं सा धारिणी सीहं सुमिणे, जहा गोयमे नवरं सुमुहे नामं कुमारे, पण्णासं कण्णाओ, पण्णासं दाओ, चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, वीसं वासाइं परियाओ, सेसं तं चेव जाव सेत्तुंजे
सिद्धे निक्खेवओ। संस्कृत छाया- नवमस्य उत्क्षेपकः । एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये द्वारावत्यां
नगर्यां यथा प्रथमे यावत् विहरति । तत्र द्वारावत्यां बलदेवो नाम राजा अभवत्, वर्ण्यः । तस्य बलदेवस्य राज्ञः धारिणी नामा देवी (राज्ञी) आसीत् वा । ततः सा धारिणी सिंहं स्वप्ने, यथा गौतमः (नवीनम्) विशेषस्तु सुमुखो नाम कुमार: पञ्चाशत् कन्यका: (परिणीतवान्) (परिणये) पञ्चाशत् दाय:, चतुर्दश पूर्वाणि अधीते, विंशति वर्षाणि (दीक्षा) पर्याय:, शेषं तदेव यावत् शत्रुञ्जये सिद्ध:
निक्षेपकः। अन्वायार्थ-नवमस्स उक्खेवओ = नवम अध्ययन का प्रारम्भ, एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं