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[अंतगडदसासूत्र संस्कृत छाया- ततः सः सोमिल: ब्राह्मण: कृष्णं वासुदेवं सहसा दृष्ट्वा भीत:, स्थित: एव स्थितिभेदेन
कालं करोति, कृत्वा धरणीतले सर्वांगैः ‘धस' इति संनिपतितः। ततः सः कृष्णः वासुदेव: सोमिलं ब्राह्मणं पश्यति, दृष्ट्वा एवमवादीत्-एष: भो देवानुप्रियः ! सः सोमिल: ब्राह्मण: अप्रार्थित प्रार्थक: यावत् परिवर्जितः । येन मम सहोदर: कनीयान् भ्राता गजसुकुमाल: अनगार: अकाले चैव जीवितात् व्यपरोपितः, इति उक्त्वा सोमिलं ब्राह्मणं पाणैः कर्षयति, कर्षयित्वा, तां भूमिं पानीयेन अभ्युक्षयति, अभ्युक्ष्य, यत्रैव स्वकं गृहं तत्रैव उपागतः स्वकं गृहं अनुप्रविष्टः । एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन भगवता यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य अन्तकृद्दशानां तृतीयस्य वर्गस्य
अष्टमस्य अध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः । अन्वयार्थ-तए णं से सोमिले माहणे कण्हं = तब वह सोमिल ब्राह्मण कृष्ण, वासुदेवं सहसा पासित्ता = वासुदेव को अचानक देखकर, भीए ठियए चेव ठिइभेएणं कालं करेइ = भयभीत हुआ खड़ा-खड़ा ही स्थितिभेद से मृत्यु को प्राप्त हो गया, करित्ता धरणितलंसि = तथा मरकर पृथ्वीतल पर, सव्वंगेहिं धसत्ति सण्णिवडिए = सब अंगों से 'धम' से गिर गया। तए णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं = तब कृष्ण वासुदेव ने सोमिल, माहणं पासइ, = ब्राह्मण को देखा, पासित्ता एवं वयासी- = देखकर इस प्रकार कहा-, एस णं भो देवाणुप्पिया! से सोमिले = हे देवानुप्रियो ! यह वह सोमिल, माहणे अपत्थिय पत्थिए = ब्राह्मण अप्रार्थनीय (मृत्यु) को चाहने, जाव परिवज्जिए = वाला (लज्जा व शोभा से रहित है।), जेण ममं सहोयरे कणीयसे भायरे = जिसने मेरे सहोदर छोटे भाई, गयसुकुमाले अणगारे अकाले = गजसुकुमाल मुनि को असमय, चेव जीवियाओ ववरोविए. = में ही जीवन से विमक्त कर दिया। त्ति कट्ट सोमिलं माहणं = यह कह कर सोमिल ब्राह्मण को, पाणेहिं कड्डावेइ, = चांडालों से घिसटवाकर हटवाया, कड्डावित्ता, तं भूमिं पाणिएणं = हटवाकर, उस भूमि को जल से, अब्भुक्खावेइ, = धुलवाते हैं, अब्भुक्खावित्ता, जेणेव सए = धुलवा कर जहाँ अपना, गिहे तेणेव उवागए = घर है वहाँ आये और, सयं गिहं अणुप्पविढे = अपने घर में (महल में) चले गये । एवं खलु जम्बू ! समणेणं = इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान, भगवया जाव संपत्तेणं = जो मोक्ष पधारे हैं, उन प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अंतकृद्दशा सूत्र, तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमस्स = के तीसरे वर्ग के आठवें, अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते = अध्ययन का यह अर्थ कहा है।
भावार्थ-तब उस समय वह सोमिल ब्राह्मण कृष्ण वासुदेव को सहसा सम्मुख देखकर भयभीत हुआ और जहाँ-का-तहाँ स्तम्भित खड़ा रह गया और वहीं खड़े-खड़े ही स्थिति भेद से अपना आयुष्य पूर्ण हो जाने से सर्वांग शिथिल हो वह सोमिल 'धस' शब्द करते हुए मर कर वहीं भूमि-तल पर गिर पड़ा।