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[अंतगडदसासूत्र संस्कृत छाया- ततः खलु स: कृष्ण: वासुदेव: द्वारावत्या: नगर्या: मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य
यत्रैव अर्हन् अरिष्टनेमिः तत्रैव उपागतः, उपागत्य यावत् वंदित्वा नमस्यित्वा गजसुकुमालम् अनगारम् अपश्यन् अर्हन्तम् अरिष्टनेमिं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा एवम् अवदत् क्व खलु भदन्त ! स: मम सहोदर: भ्राता गजसुकुमाल: अनगार: यं खलु अहं वन्दे नमस्यामि । ततः खलु अर्हन् अरिष्टनेमिः कृष्णं वासुदेवम् एवं अवदत्-साधितः खलु कृष्ण! गजसुकुमालेन अनगारेन आत्मनः अर्थः। ततः खलु स: कृष्ण: वासुदेवः अर्हन्तम् अरिष्टनेमि एवम् अवादीत्-कथं खलु
भदन्त ! गजसुकुमालेन अनगारेण साधित: आत्मन: अर्थ: ? अन्वयार्थ-तएणं से कण्हे वासुदेवे = तदनन्तर वह कृष्ण वासुदेव, बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं = द्वारिका नगरी के बीच में से, णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता = निकल गये, निकल कर, जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी = जहाँ भगवान अरिष्टनेमी थे, तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता = वहाँ आये, वहाँ आकर, जाव वंदित्ता नमंसित्ता = यावत् वंदना नमस्कार करके, गजसुकुमालं अणगारं = गजसुकुमाल मुनि को, अपासमाणे अरहं अरिट्ठणेमिं = नहीं देखते हुए भगवान अरिष्टनेमी को, वंदइ, नमसइ, = वन्दना नमस्कार करते हैं, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी = वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले, कहिं णं भंते! से मम सहोयरे = हे भगवन! वह मेरा सहोदर,भाया गयसकमाले अणगारे? = भाई गजसकमाल मुनि कहाँ है ? जण्णं अहं वंदामि नमसामि = जिसको मैं वन्दना नमस्कार करूँ । तए णं अरहा अरिट्ठणेमी = तब भगवान अरिष्टनेमी ने, कण्हं वासुदेवं एवं वयासी- = कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार कहा-, साहिए णं कण्हा ! गयसुकुमालेणं = हे कृष्ण ! गजसुकुमाल मुनि, अणगारेणं अप्पणो अढे = ने अपना कार्य सिद्ध कर लिया।
तए णं से कण्हे वासुदेवे = तब उस कृष्ण वासुदेव ने भगवान, अरहं अरिट्ठणेमिं एवं वयासी- = अरिष्टनेमी को इस प्रकार कहा-, कहण्णं भंते ! गयसुकुमालेणं = हे भगवन् ! गजसुकुमाल मुनि, अणगारेणं साहिए अप्पणो अट्टे = ने अपना कार्य कैसे सिद्ध कर लिया है ?
भावार्थ-तत्पश्चात् वह कृष्ण वासुदेव द्वारिका नगरी के मध्य भाग से निकलते हुए जहाँ भगवान अरिष्टनेमि विराजते थे वहाँ आये । वहाँ आकर यावत् भगवान को वन्दन-नमस्कार किया। तत्पश्चात् अपने सहोदर लघुभ्राता नवदीक्षित गजसुकुमाल मुनि को वन्दन-नमस्कार करने के लिये उनको इधर-उधर देखा। जब उन्होंने मुनि को वहाँ नहीं देखा तो भगवान अरिष्टनेमि को पुन: वन्दन-नमस्कार किया और वन्दन-नमन कर के भगवान से इस प्रकार पूछा-“प्रभो ! वे मेरे सहोदर लघुभ्राता नवदीक्षित गजसुकुमाल मुनि कहाँ हैं ? मैं उनको वन्दना नमस्कार करना चाहता हूँ।"