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________________ {30 [ आवश्यक सूत्र = = = = न?, जत्ता भे ? आपकी संयम रूप यात्रा निराबाध है न ?, जवणिज्जं च मे आपका शरीर, इन्द्रिय और मन की पीड़ा (बाधा) से रहित है न ?, खामेमि खमासमणो हे क्षमाश्रमण ! क्षमा चाहता हूँ, देवसियं वइक्कमं= जो दिवस भर में अतिचार (अपराध) हो गये हैं उसके लिए, आवस्सियाए पडिक्कमामि = आपकी आज्ञा रूप आवश्यक क्रियाओं के आराधन में दोषों से निवृत्ति (बचने का प्रयत्न) रूप प्रतिक्रमण करता हूँ, खमासमणाणं = आप क्षमावान श्रमणों की, देवसियाएदिवस सम्बन्धी आशातना की हो, आसायणाए तित्तिसन्नयराए = तेतीस आशातनाओं में से कोई भी आशातना का सेवन किया हो, जं किंचि मिच्छाए जिस किसी भी मिथ्या भाव से किया हो, मणदुक्कडाए (चाहे वह ) मन के अशुभ परिणाम से, वयदुक्कडाए दुर्वचन से, कायदुक्कडाए शरीर की दुष्ट चेष्टा से, कोहाए माणाए मायाए लोहाए क्रोध, मान, माया, , लोभ से, सव्वकालियाए सर्वकाल (भूत, वर्तमान, भविष्य) में, सव्व मिच्छोवयाराए = सर्वथा मिथ्योपचार से पूर्ण, सव्व धम्माइक्कमणाए = सकल धर्मों का उल्लंघन करने वाली, आसायणाए = आशातनाओं का सेवन किया या हुआ, जो मे देवसिओ (अर्थात् ) जो मैंने दिवस सम्बन्धी, अड्यारो कओ = अतिचार (अपराध) किया, तस्स खमासमणो = उसका हे क्षमाश्रमण !, = उसका हे क्षमाश्रमण !, पडिक्कमामि प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदामि = आत्म साक्षी से निन्दा करता हूँ, गरिहामि आपकी (गुरु की) साक्षी से गर्हा करता हूँ, अप्पाणं वोसिरामि दूषित आत्मा को त्यागता हूँ। = : = = = = : = = = भावार्थ- हे क्षमावान् श्रमण ! मैं अपने शरीर को पाप क्रिया से हटाकर यथाशक्ति वंदना करना चाहता हूँ। इसलिये मुझको परिमित भूमि (अवग्रह) में प्रवेश करने की आज्ञा दीजिये । पाप क्रिया को रोककर मैं आपके चरणों का मस्तक से स्पर्श करता हूँ। मेरे द्वारा छूने से आपको बाधा हुई हो तो उसे क्षमा कीजिये। आपने अग्लान अवस्था में रहकर बहुत शुभ क्रियाओं से दिवस बिताया है। आपकी संयम यात्रा तो निर्बाध है और आपका शरीर, मन तथा इन्द्रियों की पीड़ा से तो रहित है? हे क्षमावान् श्रमण! मैं आपको दिवस संबंधी अपराध के लिए खमाता हूँ और आवश्यक क्रिया कर में जो विपरीत अनुष्ठान हुआ है उससे निवृत्त होता हूँ। आप क्षमाश्रमण की दिवस में की हुई तेतीस में से किसी भी आशातना द्वारा मैंने जो दिवस संबंधी अतिचार सेवन किया हो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ तथा किसी भी मिथ्या भाव से की हुई, दुष्ट मन से, वचन से और काया से की हुई, क्रोध, मान, माया और लोभ से की हुई, भूतकालादि सर्वकाल संबंधी सर्व मिथ्योपचार से की गई, धर्म का उल्लंघन करने वाली आशातना के द्वारा जो मैंने दिवस संबंधी अतिचार सेवन किया हो, तो हे क्षमाश्रमण ! उससे मैं निवृत्त होता हूँ, आपकी मैं निंदा करता हूँ और विशेष निंदा करता हूँ, गुरु के समक्ष निंदा करता हूँ और आत्मो को (अपने आपको) पाप संबंधी व्यापारों से निवृत्त करता हूँ। विवेचन - खमासमणो देने की विधि - इच्छामि खमासमणो का पाठ प्रारम्भ कर जब निसीहि शब्द आवे तब दोनों घुटने खड़े कर उत्कटुक आसन से बैठे, घुटनों के बीच में दोनों हाथ जोड़े हुए' “निसीहि” के
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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