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________________ तृतीय अध्ययन - वंदना] 29} किलामो अप्पकिलंताणं बहुसुभेणं भे! दिवसो वइक्कंतो' जत्ता भे जवणिज्जं च भे खामेमि खमासमणो, देवसियं वइक्कम आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तिसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए, मणदुक्कडाए, वय-दुक्कडाए, कायदुक्कडाए, कोहाए, माणाए, मायाए, लोहाए, सव्वकालियाए, सव्वमिच्छोवयाराए, सव्व धम्माइक्कमणाए, आसायणाए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स खमासमणो, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। संस्कृत छाया- इच्छामि क्षमाश्रमण! वन्दितुं यापनीयया नैषेधिक्या, अनुजानीत मे मितावग्रहम् । निषिध्य अध:कायं कायसंस्पर्शम् । क्षमणीयो भवद्भिः क्लमः । अल्पक्लान्तानां बहुशुभेन भवतां दिवसो व्यतिक्रान्त:?, यात्रा भवताम्? यापनीयं च भवताम्? क्षमयामि क्षमाश्रमण! दैवसिकंव्यतिक्रमम् । आवश्यक्या प्रतिक्रमामि क्षमाश्रमणानां दैवसिक्या आशातनया त्रयस्त्रिंशदन्यतरया यत्किञ्चिन्मिथ्याभूतया मनोदुष्कृतया वचोदुष्कृतया कायदुष्कृतया क्रोधया मानया मायया लोभया सर्वकालिक्या सर्वमिथ्योपचारया सर्वधर्मातिक्रमणया आशातनया यो मया दैवसिकोऽतिचार: कृतस्तस्य क्षमाश्रमण! प्रतिक्रामामि निन्दामि गर्हे आत्मानं व्युत्सृजामि । अन्वयार्थ-इच्छामि = चाहता हूँ, खमासमणो = हे क्षमाश्रमण!, वंदिउं = वन्दना करना, जावणिज्जाए = शक्ति के अनुसार, निसीहियाए = शरीर को पाप क्रिया से हटा करके, अणुजाणह मे = आप मुझे आज्ञा दीजिए, मिउग्गहं = मितावग्रह (परिमित अर्थात् चारों ओर साढ़े तीन हाथ भूमि) में प्रवेश करने की आज्ञा पाकर शिष्य बोले कि हे गुरुदेव! मैं, निसीहि = समस्त सावध व्यापारों को मन, वचन, काया से रोक कर. अहो कायं = आपकी अधोकाया (चरणों) को. काय-संफासं = मेरी काया (हाथ और मस्तक) से स्पर्श करता हूँ (छूता हूँ), खमणिज्जो भे किलामो = इससे आपको मेरे द्वारा अगर कष्ट पहुँचा हो तो उस कष्ट प्रदाता को अर्थात् मुझे क्षमा करें, अप्पकिलंताणं = हे गुरु महाराज! अल्प ग्लान अवस्था में रहकर, बहुसुभेणं = बहुत शुभ क्रियाओं से सुख शान्ति पूर्वक, भे! दिवसो वइक्कंतो? = आपका दिवस बीता है 1. दिवसो वइक्कतो2. देवसियं 3. देवसियाए 4. देवसिओ दैवसिक प्रतिक्रमण राइ वइक्कंता राइयं राइयाए राइओ रात्रिक प्रतिक्रमण पक्खो वइक्कतो पक्खियं पक्खियाए पक्खिओ पाक्षिक प्रतिक्रमण चाउम्मासो वइक्कतो चाउम्मासियं चाउम्मासियाए चाउम्मासिओ चातुर्मासिक प्रतिक्रमण संवच्छरो वइक्कतो संवच्छरियं संवच्छरियाए संवच्छरिओ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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