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________________ परिशिष्ट-4] 165} प्रश्न 25. शुद्ध भावों से वन्दना करने से क्या-क्या लाभ होते हैं? उत्तर उत्तराध्ययन सूत्र के 29वें अध्ययन में बतलाया कि वन्दना करने से नीच गोत्र कर्म का क्षय होता है। उच्च गोत्र का बन्ध होता है। दाक्षिण्य भाव प्राप्त होता है। लोकप्रियता प्राप्त होती है। अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वन्दन करने से अहंकार नष्ट होता है। विनय की उपलब्धि होती है। सद्गुरुओं के प्रति अनन्य श्रद्धा व्यक्त होती है। तीर्थङ्करों की आज्ञा पालन करने से शुद्ध धर्म की आराधना होती है। अपने से अधिक सद्गुणों और विकसित आत्माओं को नमन करने से चित्त में प्रमोद भाव उत्पन्न होता है। प्रमोद भावना से सद्गुणों की प्राप्ति होती है। ईर्ष्या, द्वेष, मत्सर आदि दुर्गुणों का समूल नाश होता है। साधक का हृदय विशाल, उदात्त और उदार बनता है। साधक के विचार पवित्र होते हैं। आत्मा में साहस और शक्ति का संचार होता है। दृढ़ संकल्प के साथ आराध्य जैसा बनने का प्रयास करता है। सद्गुणों को पाने की प्रबल प्रेरणा प्राप्त होती है। कर्मों की महती निर्जरा होती है। तीर्थङ्कर गोत्र का उपार्जन भी हो सकता है। श्री कृष्ण महाराज को शुद्ध भावों से अरिष्टनेमि भगवान एवं इनके शिष्यों को वन्दना करने पर क्षायिक समकित की प्राप्ति होने का उल्लेख भी ग्रन्थों में मिलता है। प्रश्न 26. वन्दना करते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए? उत्तर वन्दना करते समय निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए 1. वन्दना गुरुदेव के सामने खड़े होकर करना चाहिए। जहाँ तक हो सके इनके पीछे खड़े होकर __वन्दना नहीं करना चाहिए। 2. यदि गुरुदेव सामने नहीं हों तो पूर्व दिशा, उत्तर दिशा अथवा ईशान कोण (उत्तर पूर्व दिशा के ___ बीच में) में मुख करके खड़े होकर वन्दना करना चाहिए। 3. आसन से नीचे उतरकर वन्दना करना चाहिए, आसनादि पर खड़े होकर वन्दना नहीं करना चाहिए। 4. गुरुदेव सामने हों अथवा नहीं हों आवर्तन देने का तरीका एक समान ही अर्थात् ललाट के मध्य में दोनों हाथ रखकर अपने स्वयं के बाँये से दाहिनी ओर दोनों हाथों को घुमाते हुए आवर्तन देने चाहिए। 5. तिक्खुत्तो के पाठ से वन्दना करते समय आवर्तन देने के पश्चात् 'वंदामि' शब्द नीचे बैठकर दोनों हाथ जोड़ते हुए बोलना चाहिए। 'नमसामि' शब्द का उच्चारण करते पाँचों अंग (दोनों हाथ, दोनों घुटने और मस्तक) गुरुदेव के चरणों में झुकाना चाहिए। इसी प्रकार इस
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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