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________________ [ आवश्यक सूत्र चउरिन्द्रिय में - मक्खी, मच्छर, टीड, पतंगा, भँवरा, भिंगोरी, कसारी, बिच्छु आदि चउरिन्द्रिय जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । { 104 पंचेन्द्रिय में-जलचर, थलचर, खेचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, सन्नी, असन्नी, नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव आदि पंचेन्द्रिय जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । 1. ईर्या समिति-के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं द्रव्य से-छ: काया के जीवों को देखकर न चला हो, क्षेत्र से - झूसरा प्रमाणे चार हाथ सामने देखकर न चला हो, काल से दिन को देखकर रात्रि में पूँजकर न चला हो, भाव से उपयोग सहित नहीं चला हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । 2. भाषा समिति - के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं कर्कश, कठोर, सावद्य, सपाप, छेदकारी, भेदकारी, खोटी, कूड़ी, मिश्र भाषा बोली हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । 3. एषणा समिति-के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं-सोलह उद्गम का दोष, सोलह उत्पादन का दोष, दस एषणा का दोष, पाँच मांडला का दोष, पूर्व कर्म, पश्चात् कर्म, असूझता, अनेषणिक, अप्रासुक आहार लिया हो और सूझता की खप न की हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । 4. आदान - भाण्ड - मात्र निक्षेपणा समिति के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउंभण्डोपकरण, वस्त्र, पात्र आदि बिना देखे, बिना पूँजे, अयतना से लिये हों, अयतना से रखे हों, पूँजता पडिलेहता अयतना की हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । 5. उच्चार - प्रस्रवण - श्लेष्म- मैल-सिंघाण-परिष्ठापनिका समिति के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं बड़ीनीत, लघुनीत आदि बिना देखे, बिना पूँजे परठी हो, जावताँ “आवस्सहीआवस्सही” नहीं कहा हो, आवताँ - “निसिही-निसिही" नहीं कहा हो, शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा नहीं ली हो, परठ के तीन बार वोसिरामि-वोसिरामि नहीं कहा हो, वापस आकर चउवीसत्थव न किया हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । 1. मनगुप्ति-के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं मन में संकल्प, विकल्प, अट्ट (आर्त्त) दोहट्ट (दुःख से पीड़ित ) किया हो, संयम से मन को बाहर प्रवर्ताया हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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