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परिशिष्ट-1]
103} धर्म है । जीवादि तत्त्वों की जानकारी, इनके जानकारों की सेवा, समकित से गिरे तथा मिथ्यादृष्टियों की संगति छोड़ने से सम्यक्त्व सुरक्षित रहता है। इसमें शंकादि समकित के 5 अतिचारों की आलोचना कर मिच्छा मि दुक्कडं दिया गया है। सुदेव, सुगुरु, सुधर्म रूप सम्यक्त्व, मोक्ष का मार्ग है।
चारित्र के अतिचारों का पाठ पृथ्वीकाय में-मुरड़, माटी, खड़ी, गेरु, हिंगलू, हरताल, सुरमो, खापरियो आदि पृथ्वीकाय के जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।'
____ अप्काय में-ओस, हेम, ठार, बर्फ, गड़ा, कुएँ का पानी, तालाब का पानी, नदी का पानी, कच्चा पानी, मिश्र पानी, शंका का पानी आदि अप्काय के जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।'
तेउकाय में-खीरा, अंगारा, भोभर, भरासा, झाल, टूटती हुई झाल, बिजली, आहार आदि के संघट्टे में तेउकाय के जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।'
वायुकाय में-उक्कलिया वाय, मंडलिया वाय, घनवाय, तनुवाय, शुद्धवाय, संवट्टवाय, छींक, उबासी, हालताँ, चालताँ, पूँजताँ, पडिलेहताँ, उघाड़े मुख बोलताँ आदि अयतना से क्रिया करता वायुकाय के जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।'
वनस्पतिकाय में-हरी, तरकारी, बीज, अंकुरा, कण, कपासिया, लीलण, फूलण आदि वनस्पति के जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।' ।
त्रसकाय-बेइन्द्रिय में-लट, गिण्डोला, शंख, संघोटिया, शीप, कोड़ी, जलोक आदि बेइन्द्रिय जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
तेइन्द्रिय में-कीड़ी, मकोड़ी, जूं, लीख, चाँचड़, माकड़, गजाई, कुंथुआ आदि तेइन्द्रिय जीवों की विराधना की हो, कराई हो, करते हुए को भला जाना हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।