SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सहजता है। आपकी ज़िम्मेदारी का हर्ज नहीं है। आपकी देखने की इच्छा होनी चाहिए, उसके बावजूद भी देखने में नहीं आता, तो फिर आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है। जब प्रकृति को संपूर्ण रूप से जान लें, तब भगवान बन जाता है। प्रकृति में एकाकार नहीं हुआ अर्थात् उसे जाना, वर्ना यदि प्रकृति में एकाकार हो जाए तो जान नहीं सकता, तभी से बंधन है। अगर उसे प्रकृति समझ में आ जाए तो वह मुक्त हो जाएगा। अलग रहकर देखे तो साहजिक प्रश्नकर्ता : आप्तसूत्र में ऐसा है कि प्रकृति और आत्मा के बीच की चंचलता खत्म हो गई, उसे साहजिकता कहते हैं। दादाश्री : बस। प्रश्नकर्ता : यह बीच की का मतलब क्या है ? दादाश्री : इमोशनल होता है, उसमें प्रकृति इमोशनल नहीं है, अगर 'खुद' उसमें एकाकार हो जाए तो इमोशनल हो जाता है। प्रश्नकर्ता : खुद का मतलब, अहम् प्रकृति में एकाकार होता है इसलिए यह... दादाश्री : एकाकार होता है इसलिए चंचलता उत्पन्न हो जाती है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह खुद की चंचलता चली जानी चाहिए? दादाश्री : अब, यदि अलग रहकर देखे तो साहजिक होगा। ___ जहाँ इफेक्ट को आधार, वहाँ कॉज़ प्रश्नकर्ता : अहम् किस तरह से एकाकार होता है ? दादाश्री : प्रकृति में 'इफेक्ट' तो अपने आप ही होता रहता है लेकिन खुद अंदर 'कॉज़ेज़' करता है, आधार देता है कि 'मैंने किया, मैं बोला'। वास्तव में तो 'इफेक्ट' में किसी को करने की ज़रूरत ही नहीं है।
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy