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________________ जाएगी। जब व्यवहार में सामने वाले को शुद्धात्मा रूप से देखने का समय आता है तब भरा हुआ माल बीच में आ जाता है इसलिए अभ्यास की ज़रूरत पड़ती है। पहले अज्ञानता थी, इसलिए यह मैंने किया और यह मैंने जाना' ऐसे खुद कर्ता और दृष्टा दोनों बन जाता था, अतः असहज था। ज्ञान लेने के बाद सहज होने की शुरुआत हो जाती है। __ यह कृपा से जो प्राप्त हुआ, वह शुद्धात्मा पद है, जब वह प्राप्त हुआ तभी से मोक्ष होने की मुहर लग गई। अब यदि ज्ञानी की आज्ञा का पालन करेंगे तो धीरे-धीरे निरालंब होकर रहेंगे। ज्ञान प्राप्ति के बाद, आत्म दर्शन होने के बाद, निरालंब की तैयारियाँ होती रहती हैं, अवलंबन कम होते जाते हैं। महात्माओं को यह बात जान लेनी चाहिए कि यदि ज्ञान में बहुत ऊँची दशा रहती हो... उदाहरण के तौर पर निरंतर शुद्धात्मा का लक्ष सहज रूप से रहता हो, व्यवहार में चिंता व क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं होते हो, तो भी वह मूल आत्मा तक पहुँचने वाली दशा नहीं है। यह शुद्धात्मा, वह शब्दावलंबन है। मोक्ष के पहले दरवाज़े में घुस गए हैं। मोक्ष होगा ही, उसमें दो मत नहीं है लेकिन जो निरालंब मूल आत्मा प्राप्त करना है विज्ञान स्वरूप पद, वह अभी भी आगे के ध्येय के रूप में लक्ष में रखना है। इन पाँच आज्ञा के पालन से शब्दावलंबन धीरे-धीरे छूटता जाएगा और मूल 'केवलज्ञान स्वरूप' दर्शन में आता जाएगा। वह आते-आते, खुद के सेल्फ में ही अनुभव रहा करेगा, वह अंतिम दशा है। दादाश्री खुद इस काल में ऐसी मुक्त दशा में रहते थे! [2] अज्ञ सहज - प्रज्ञ सहज जितना सहज होता है उतना ऐश्वर्य प्रकट होता है। ये जानवर, पशु-पक्षी सभी सहज हैं, बालक भी सहज है और यहाँ की स्त्रियों के बजाय फॉरेन वाले (इसमें कोई अपवाद हो सकता है) ज़्यादा सहज हैं। क्योंकि उनके क्रोध-मान-माया-लोभ फुल्ली डेवेलप 14
SR No.034326
Book TitleSahajta Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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