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हो, उसके बगैर पूर्णाहुति नहीं होगी। तब तक प्रगति के लिए ज्ञानी का ज्ञान और आज्ञा की आराधना से आगे की प्रगति होती रहेगी।
अनेक मुमुक्षुओं और महात्माओं के साथ वर्षों से अलग-अलग क्षेत्र में निमित्त के अधीन निकली हुई वाणी को यहाँ पर एक समान संकलित करके अखंड बनाने के प्रयास हुए हैं। सुज्ञ पाठक को यदि कहीं कुछ कमी लगे तो वह संकलन की गलती के कारण है, क्योंकि ज्ञानीपुरुष की अविरोधाभास, स्याद्वाद वाणी, सहजता की पूर्ण दशा में रहकर निकली हुई, मालिकी बगैर की वाणी है, इसलिए उसमें किसी भी प्रकार की गलती हो ही नहीं सकती।
- दीपक देसाई