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अंत:करण में दखल किसकी?
इसीलिए मार खाता रहता है। पूरा संसार सहज मार्ग वाला है, सिर्फ, मनुष्य के जन्म में ही मार खाता है। जैसे कौआ, कबूतर, मछली, उन सभी के लिए क्या कोई हॉस्पिटल बनी है ? क्या उन्हें रोज़ नहाना-धोना पड़ता है ? उसके बावजूद भी कितने सुंदर दिखाई देते हैं ! क्या उन्हें कुछ संग्रह करने का रहता है? वे सभी तो भगवान के आश्रित हैं। जबकि सिर्फ, ये मनुष्य ही निराश्रित हैं, सभी। फिर चाहे वे साधु हो, संन्यासी हो या और कुछ हो। जिन्हें कभी भी ऐसा लगे कि 'मेरा क्या होगा' वे सभी निराश्रित हैं! जो भगवान पर भरोसा नहीं रखते और संग्रह करते रहते हैं, वे सभी निराश्रित हैं, इसीलिए तो चिंता-परेशानी है।
सभी जीवों में सिर्फ, मनुष्य ही ऐसा है कि जो अहंकार का उपयोग करता है और इसीलिए यह संसार उलझा हुआ है। यदि सभी में सहज भाव रहा होता जानवरों के जैसे, भगवान के जैसे, तब तो मोक्ष की तरफ ही आगे बढ़ते। लेकिन अहंकार का उपयोग करता है न इसलिए तिर्यंच गति मिलती है। वर्ना, गधा, कुत्ता कौन बनता? फिर कुम्हार किससे मिट्टी ढोता? अतः गधे, कुत्ते, और गायें सभी संसार की सेवा करते हैं।
पहले तो जैसे प्रकृति नचाए वैसे आप नाचते थे। लेकिन उसमें भी यदि फॉरेनर्स के जैसे सहज रूप से रहे होते तो भी अच्छा था। लेकिन दखलंदाजी किए बिना नहीं रहता न, वापस अहंकार करता है। अहंकार, वह तो घोर अज्ञानता है।
डिस्चार्ज होता अहंकार... उसके बावजूद भी अहंकार तो उपयोगी ही है। अहंकार के बगैर तो गाड़ी नहीं चलती। मूल अहंकार चला गया। जिससे संसार था, वह अहंकार चला गया। अब तो, यह जो डिस्चार्ज होता अहंकार है, उसे खाली करना है। वह अहंकार, उदय में आए बगैर खाली नहीं होगा न! जो क्रोध-मान-माया-लोभ भरे हुए हैं, वे सभी अहंकार से ही खाली होंगे
न!
प्रश्नकर्ता : जिन्होंने ज्ञान लिया है उनके लिए हैं न?