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ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
में दो आँखों के बीच) देखते रहो, उन्होंने कहा । मैंने देखा, उसके बाद दूसरे दिन दुःखने लगा । मैंने कहा, 'यह रास्ता आप कहाँ से लाए ? ' किसने सिखाया है आपको ? मुझे तो इस तरह देखने से दुःखता है अब आगे क्या होगा?' तब उन्होंने कहा, 'वह तो कुछ दिन बाद ठीक हो जाएगा'। मैंने कहा, ‘सब से पहले जो दुःख आता है न! वही दुःख है'। क्रिया का स्वभाव ऐसा है कि बार-बार करने से वह सहज हो जाती है। क्या हो सकता है ? कोई भी क्रिया नहीं करनी है । आत्मा में क्रिया नामक गुण है ही नहीं। वह स्वभाव ही नहीं है । वह खुद ही अक्रिय स्वभाव वाला है, और करना क्या है ? तो यह जो मेटर (जड़) है, उसमें करने का गुण है । आप मेटर रूपी बनकर कर सकोगे। जो कोई भी क्रिया करते हो वह मेटर रूप से ही कर सकोगे । अतः ये सारे रास्ते उल्टे थे कि, ऐसा करो और ऐसा करो ।
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ये जो चक्र हैं, वे सब किसके लिए हैं ? रास्ते चलते अगर थकान हो जाए तो विश्राम स्थल हैं । इससे थोड़ी देर के लिए आप आराम कर लेते हो। मोक्ष मार्ग में जाते-जाते थकान लगे तो विश्राम स्थल नहीं चाहिए? तो ये विश्राम स्थल हैं, उसके बजाय इसी को परमानेन्ट मार्ग बना दिया। योग ऐसा था ही नहीं । हिन्दुस्तान में कौन सा योग था ? सिर्फ आत्म योग था। ये दूसरे सब योग, चक्र के योग तो विश्राम स्थल हैं।
बचपन में जब मैं अगास जाता था तब वहाँ पर कहते थे कि 'माला करो', तब मैंने कहा कि 'मैं माला करने नहीं आया हूँ। मैं तो श्रीमद्जी की (बातों का) अभ्यास करने आया हूँ' ।
जो चिंता नहीं घटाए, वह लाइट किस काम की ?
एक बार बचपन में, जब सत्रह - अठारह साल का था तब आँख दबाकर एक प्रयोग किया था। एक बार ज़रा हाथ से दबाकर आँख मसली थी। आँखों को बहुत मसलकर आँखें खोलने पर क्या दिखाई देता है ?
प्रश्नकर्ता : ऐसा कोई स्पॉट जैसा दिखाई देता है।
दादाश्री : कैसा दिखाई देता है? लाइट !