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[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ
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दादाश्री : पूरी जिंदगी मैंने गलतियाँ ही खत्म की हैं। तेरह साल की उम्र के बाद मैंने कहा कि 'ये कौन है ?' अगर ऊपरी नहीं है तो, लोगों को ऐसी दखल क्यों है? मुझे श्रद्धा है कि कोई ऊपरी नहीं है, तो फिर यह दखलंदाजी क्यों है? लोग इस तरह परेशान करते हैं, पुलिस वाले भी करते हैं, तो जवाब मिला कि, 'अपनी भूलें हैं, वही। भूलें खत्म हो जाएँगी तो कोई ऊपरी नहीं रहेगा'।
अभी अगर आप कोई गुनाह करो और फिर पुलिस वाले को डाँटकर आओ तो वह आपका ऊपरी बनेगा। फिर वह घर पर आएगा या नहीं, डंडा लेकर? और अगर हम गुनाह करने के बाद उससे माँफी माँग लें, छुटकारा कर आएँ तो क्या वह आएगा? तो ये गुनाह ही आपके ऊपरी हैं, अन्य कोई ऊपरी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : अपनी भूलें तो खत्म करनी ही पड़ेंगी न! अब मैं आपको सिखाता हूँ। अपनी भूलें खत्म कर दोगे तो आपका कोई ऊपरी नहीं रहेगा।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : जब तक भूलें पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाती, तब तक दादा आपके ऊपरी हैं। ___अतः मैं तेरह साल की उम्र से ही भगवान को अपने ऊपरी के तौर पर स्वीकार नहीं करता था। मेरी भूलें और ब्लंडर्स, बस इतना ही ऊपरी है, अन्य कोई ऊपरी नहीं है और आपके लिए भी वही ऊपरी हैं, अन्य कोई ऊपरी नहीं है।
आत्मयोग के अलावा सब योग विश्राम स्थल जैसे हैं
प्रश्नकर्ता : तो धर्म में जो इस प्रकार की प्रथाएँ चल रही थीं, लेकिन आप उनमें नहीं फँसे, क्या ऐसी कोई घटना हुई थी?
दादाश्री : एक महाराज मुझे योग सिखाने लगे। 'यहाँ (कपाल