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________________ [10.6] विविध प्रकार के भय के सामने... 391 प्रश्नकर्ता : इस प्रकार भूत से भागना नहीं है। दादाश्री : भागना नहीं है, हमें सामना करना है। जो होना होगा वह होगा। जब पड़ रही है तो पड़ने दो पूरी तरह से। अगर उसके गिरने से सिर में छेद होना है तो उसके बजाय हम ही न लगा दें? जो होना हो सो हो, हमें उस पर पड़ना है। अब वापस नहीं लौटना है। वापस लौटेंगे तो हमें पकड़ लेगा। भागने से चिपक पड़ता है। लोग क्या कहते हैं, 'भूत से भागे इसलिए वह आपसे चिपक पड़ा'। लेकिन हमें तो ऐसी बुरी आदत थी ही नहीं, भागने की आदत ही नहीं थी। वर्ना अगर कोई दूसरा होता तो वहाँ से रास्ता बदल देता। भूत क्या वहाँ से भाग जाता? क्या कहते हो साहब? प्रश्नकर्ता : कोई और होता तो पसीना छूट जाता। आत्म श्रद्धा थी कि 'मुझे कुछ नहीं होगा' दादाश्री : यही एक बड़ी आदत थी, भय का सामना करने की आदत। कोई भी लुटेरा आए तो मुझे उसका सामना करने की आदत हो गई थी, भागने की आदत नहीं थी। अंदर ऐसी आत्म श्रद्धा थी कि, 'मुझे कुछ नहीं होगा'। पूर्व जन्म का ऐसा कुछ होगा! प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : वर्ना ऐसी श्रद्धा नहीं हो सकती। पचास लोग हों फिर भी बिल्कुल भी नहीं घबराऊँ। तलवारें और बंदूक लेकर आ जाएँ तब भी नहीं डरूँ। डर तो मैंने देखा ही नहीं। इसलिए ऐसा हुआ कि लाओ अब, उसका सामना करते हैं। उस भूत पर, भूत पर ही जाकर हमला करूँ। फेंक दूं साइकल उस पर। अतः मैंने साइकल की स्पीड बढ़ाई, खूब स्पीड बढ़ाई, फिर तो मैंने जाकर साइकल गिरा दी तो साइकल ज़ोर से जहाँ लपटें उठ रहीं थी वहीं पर गिरा दी।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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