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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) रहा था। यहाँ जरोद में विश्वामित्री ब्रिज बनाया था। 1932 में वह ब्रिज बनाने का कॉन्ट्रैक्ट लिया था । तब चौबीस साल की उम्र में ब्रिज पर (लो लेवल) काम के लिए जा रहा था । वहाँ काम की साईट पर मकान ले रखा था, वहाँ पर रहने के लिए ले रखा था । साईट पर रहते हैं तो वहाँ जाता था साइकल से । एक दिन साइकल लेकर गाँव में गया था। वहाँ गाँव में जाकर फिर वापस लौटते हुए देर हो गई। रात को साढ़े ग्यारह बजे अँधेरे में जा रहा था साइकल पर । धूल-मिट्टी वाला रास्ता और घोर अँधेरा हो गया था। देर हो गई थी, तो स्पीडिली साइकल चलाई । 390 लोगों ने मुझे बताया था कि इस जगह पर ऐसा है । मुझे लोगों की बताई बातें याद आ गईं। यह जो महुडा है न, उस पर भूत रहते हैं । ऐसी बात सुनी थी कि वहाँ रास्ते में महुडा का भूत है । जब महुडा आने लगा, तो मुझे भूत दिखाई देने लगा । तब मुझे मन में वहम हो गया, यह भूत आया है या क्या है ? वहाँ देखा तो बड़ी-बड़ी लपटें दिखाई दीं और बुझ जाती थीं । लपटें उठती थीं और बुझ जाती थीं । भूत की लपटें देखीं। दो सौ फुट दूर से मुझे तो लपटें दिखाई दीं। फिर तो ज़ोर से साइकल चलाई। नज़दीक जाने पर लपटें बड़ी होती गईं। लोगों ने मुझे जो बताया था, वह सच लगने लगा। फिर मैंने सोचा अब तो आ ही फँसे हैं तो साहस करो ! शूरवीरता वाला स्वभाव, तो भय का सामना किया तब फिर मैं तो मूल रूप से शूरवीर रंग वाला था न ! तो भय के सामने हथियार ढूँढ निकाला। अंदर घबराहट से ऐसा- ऐसा हो रहा था कि 'साला, क्या ?' अतः एक तरफ डर तो लगा लेकिन दूसरी तरफ हमला करने की आदत । यह ज्ञान नहीं हुआ था, तो एक बुरी आदत थी कि जहाँ-जहाँ पर तकलीफ होती थी, जहाँ डर लगता था, वहाँ सामने जाता था । ऐसी आदत थी। पीछे नहीं लौटता था । उस आदत ने ज़ोर मारा । वह भूत है तो भूत, उसका सामना करना है । जो होना होगा वह होगा, भागना नहीं है । मैंने क्या तय किया ?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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