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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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सी पुड़िया'। फिर पुड़िया लेकर उसने पढ़ी, फिर वह चला गया। फिर दूसरे दिन मुझसे कहता है, 'टकराव में नहीं आना, लेकिन उसका अर्थ क्या है ?' तब मैंने कहा, 'हाँ, बैठ अब'। मैंने कहा, 'अब यहाँ से तू बाहर निकलेगा और सामने साँप आ जाए तो क्या तू उससे टकरा जाएगा?' 'नहीं, मैं तो घूमकर जाऊँगा'। मैंने कहा, 'क्यों?' तो कहता है, 'काट खाएगा'। मैंने कहा, 'अच्छा! और अगर सामने बाघ आ जाए तो?' 'नहीं। भाग जाऊँगा'। मैंने कहा, 'भैंसा आ जाए तो?' तब कहा, 'नहीं। घूमकर जाऊँगा'। मैंने कहा, 'अगर सामने पत्थर हो तो? तो क्या तू ऐसा कहेगा कि पत्थर तू यहाँ पर क्यों खड़ा है ? तू हट यहाँ से'। तब उसने कहा, 'नहीं, । कूदकर चला जाऊँगा। उसे हटा सकते हैं क्या?' ऐसे करते-करते पहले उसे स्थूल टकराव टालने की बात समझाई। स्थूल, जो आँखों से दिखाई दे, मन का काम नहीं। मन की इसमें ज़रूरत ही नहीं है। जो आँखों से दिखाई दे, पहले वैसा टकराव टालना सिखाया। नियम से सूत्र का पालन किया, और बन गया सक्षम
फिर सूक्ष्म टकराव टालना सिखाया। किसी के साथ मतभेद हो जाए और हमें लगे कि वह हमेशा के लिए टूट जाएगा तो इससे पहले कहना कि, 'नहीं-नहीं। यह तो मुझसे गलती हो गई'। ऐसा करके सुलह कर लेना। मुझे कहता है, 'यह तो आ गया मुझे'। वह सब तो उसे आता था। यह तो उसकी मूल लाइन थी। अतः ऐसा करते-करते टकराव टालना है, उस नियम से वह टिका हुआ है। अभी तक टिका हुआ है। एक ही लाइन, बस।
अब जैसे यह हमारा भतीजा लगता है उसी तरह हमारे दूसरे भतीजे भरुच टेक्सटाइल मिल के मालिक, इन चंद्रकांत भाई के चाचा थे। उन्होंने भी इस भतीजे को वापस नौकरी पर रखा था। मुझसे पूछा कि, 'यह आपके यहाँ पर था तो क्यों निकल गया?' मैंने कहा, 'समझदार हो गया है। अब आप रखना'। तो उन्होंने अच्छी तनख्वाह पर रखा। उस लड़के ने तो बहुत ही अच्छी तरह से उनका काम करके