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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
फिर भी आपको नहीं छुएंगे। लोग तो धकेलते रहते हैं और हिसाब नहीं चुकने देते। लेकिन बात भी सही है, जब तक कमज़ोरी है तब तक मच्छरदानी बाँधकर सोओ।
प्रश्नकर्ता : मारने से तो अच्छा है न?
दादाश्री : अगर उसमें कमज़ोरी है तो। बाद में कभी धीरे-धीरे कम हो जाएगा लेकिन अपना भाव ऐसा ही रखना है कि मारना नहीं है।
खटमल को निकालो, लेकिन मारो नहीं प्रश्नकर्ता : ऐसा ही मच्छरों का भी है। अब मच्छरदानी लगाकर हम ऐसा करते हैं कि वे हमें काटें नहीं और ज़रा चैन से आराम करने
दादाश्री : मच्छरदानी लगाने में हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : क्या उसमें हर्ज नहीं है?
दादाश्री : ना। उसमें हर्ज नहीं है। आप उन्हें मारो तो उसमें आपत्ति है। वर्ना पूरी रात जागकर खटमल को निकालो तब भी कोई आपत्ति नहीं है। पूरी रात जागते रहोगे तो खटमल चले जाएँगे। अब इसमें तो कोई मच्छरदानी है नहीं, खटमलों के लिए कैसे लाओगे? मच्छरदानी लगाना आराम से। हम ऐसा नहीं कहते हैं कि आप मच्छरदानी मत लगाओ। क्योंकि इस काल के मनुष्यों की ताकत नहीं है न, यह सब सहन करने की! सहन करने की शक्ति भी होनी चाहिए न! उसे क्या कहते हैं ? तितिक्षा।
बिस्तर पर रखने पर भी न काटें तो हो गया हिसाब पूरा
प्रश्नकर्ता : हम जब यात्रा पर गए थे, तब आपके डिब्बे में तो कितने सारे खटमल थे!
दादाश्री : हाँ। फिर भी मुझे नहीं छू रहे थे। जितने लोग इन खटमलों को मारने की हिंसा करते हैं न, उन्हें जितने खटमलों ने काटा,