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________________ [5.1] संस्कारी माता 125 दादाश्री : हो ही नहीं सकती! हमारे पूरे गाँव में नहीं थी। उनके ऐसे सारे संस्कारों से दिवाली बा (दादा की भाभी) और भी उल्टी चलने लगीं, इस चीज़ का दुरुपयोग हुआ। प्रश्नकर्ता : उन्होंने ऐसा देखा कि यहाँ पर ढील है। दादाश्री : हाँ, ढील देखी इसलिए दुरुपयोग हुआ। प्रश्नकर्ता : उनके दूसरे गुण नहीं देखे? दादाश्री : वे गुण नहीं देखे और उनकी कमज़ोरियाँ देखीं इसलिए लोग कहते थे कि 'सास बहू को कुछ भी नहीं कहती इसलिए बहू चढ़ बैठी है', तब बा कहती थीं कि 'मैं बहू से क्या कहूँ?' लेकिन जब कोई बाहर वाला आकर कहता था तो मुझे जोश आ जाता था। वे कुछ नहीं कहती थीं इसलिए मुझे मन में ऐसा होता था कि 'मैं कह दूँ उन्हें उस कारण से फिर मेरा झगड़ा हो जाता था। तब बा मुझे भी मना करती थीं कि 'भाभी से कुछ मत कहना', लेकिन वह चरित्र बल तो रहा ही होगा। चरित्र बहुत अच्छा, उत्तम! हमारी बा का चरित्र कितना उच्च ! प्रश्नकर्ता : वे बा तो बा ही थीं, झवेर बा! दादाश्री : उनका (हीरा बा का) भी चरित्र कितना उच्च था। झवेर बा को (कभी नज़र उठाकर सख्ती से) नहीं देखा हीरा बा ने। (संपूर्ण विनय में ही रहे)। उन्हें (हीरा बा को) भी बा के वे अच्छे संस्कार मिले। दिवाली बा को भी अच्छे मिले लेकिन दिवाली बा एकदम सख्त बेल बन गई थीं न! इसीलिए उनमें से कड़वाहट नहीं गई। बाकी, भाभी थे योगिनी जैसे, उसमें तो दो मत नहीं। इन गुणों की वजह से बा पर मोह तो मुझे मोह सिर्फ बा पर ही था। हाँ, इतने सुंदर गुण थे इसीलिए मोह उत्पन्न हो गया। प्रेम भरे, पैसे-वैसे कुछ भी नहीं चाहिए था उन्हें, ऐसी थीं मेरी बा।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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