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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
दादाश्री : वह सब तो खत्म हो गया है लेकिन फिर से आएगा वापस। चालीस-पच्चास साल से कड़वी बारिश हो रही है। बोलो, क्या अच्छा उगेगा उसमें ? तीन साल से थोड़ी-बहुत मीठी बारिश होने लगी है। फिर से मीठा अनाज उगेगा, अच्छा वाला।
अलबेली नगरी मुंबई और ईरानी होटल की चाय प्रश्नकर्ता : दादा, आपके ज़माने की ऐसी कोई बात बताइए न?
दादाश्री : हम 1928 में मुंबई आते थे। उन दिनों मुंबई नगरी बहुत सुंदर थी और बहुत अच्छी लाइट थी। तो 1928 से अभी तक कितने साल हुए?
प्रश्नकर्ता : 56 साल हुए। (1984 में)
दादाश्री : उस समय कैसी अलबेली नगरी थी यह तो! हम 1928 में आते थे न, तो म्युनिसिपालिटी कितनी अच्छी समझदार थी। ज़रा सी भी गंदगी नहीं, साफ-सुथरा।
प्रश्नकर्ता : हाँ, बहुत सफाई थी दादा।
दादाश्री : और अभी, या तो कहीं नाजायज़ कब्जा होता है या फिर म्युनिसिपालिटी का कोई घोटाला होता है लेकिन अभी तो ऐसा ही है अब।
प्रश्नकर्ता : घोटाले वाला।
दादाश्री : या तो एन्क्रोचमेन्ट होता है क्योंकि उन दिनों यहाँ बारह लाख जनसंख्या थी और अभी (1984 में) सत्तर लाख हो गई होगी।
प्रश्नकर्ता : एक करोड़ हो गई होगी अब तो। दादाश्री : म्युनिसिपालिटी वाले भी क्या करें फिर?
तब यह नगरी कितनी सुंदर थी और हर एक चीज़ की कितनी फेसिलिटी मिलती थी और जगह-जगह पर दुकानें, ईरानी की होटलें, उसकी चाय पीओ तो मज़ा आ जाए।