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________________ [3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े दो रुपए में बादशाह जैसे ऐश प्रश्नकर्ता : दादा, आपके बिज़नेस के समय की बात कीजिए ना? दादाश्री : बिज़नेस में आने के बाद से हमें पैसों की कमी नहीं रहती थी। घर पर तो पैसे की कमी देखी थी। कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस था, तो लोगों से उधार लाते और सरकार नकद देती थी। फिर बिज़नेस में पैसों की कमी कैसी भाई? अपने यहाँ कमी होनी चाहिए या उस उधार वाले के वहाँ? प्रश्नकर्ता : उधार वाले के वहाँ। दादाश्री : हाँ! अपने यहाँ कैसी कमी? अतः हमारे कॉन्ट्रैक्ट के बिज़नेस में पैसों की कमी नहीं थी इसलिए जेब में पैसे रखे रहते थे। दो रुपए होते थे तो छ:-सात मित्र पीछे-पीछे घूमते रहते थे, पूरे दिन क्योंकि चाय-पानी-नाश्ता वगैरह करते थे। दो रुपए में तो शाम तक बहत कुछ हो जाता था। आजकल तो दो सौ रुपए लेकर जाएँ तब भी नहीं होता। हम 1925-26 में दो रुपए लेकर निकलते थे न, तो छ:-सात दोस्तों के साथ ही घूमते रहते थे पूरे दिन। फिर भी शाम को पैसे कम नहीं पड़ते थे। हमारी जेब में खर्च करने के लिए एक-दो रुपए रहते थे न! प्रश्नकर्ता : हाँ जी।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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