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________________ (२.४) अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद' २५९ अवस्थाओं को देख सकते हैं। जब मूल तत्त्व को देखने लगेगा, तब ज्ञानी कहलाएगा। ये जो छः वस्तुएँ हैं, वे अविनाशी हैं। हम जब ज्ञान देते हैं तब आपसे कहते हैं कि 'आप शुद्ध चेतन हो'। तब वस्तु को देखना शुरू कर देता है। उससे कहते हैं कि 'आपने अपने अविनाशी भाव को पाया'। जगत् में सारी अवस्थाएँ एक ही रूपी तत्त्व की दिखाई देती हैं। जब ज्ञानी शुद्धात्मा दिखा देते हैं तब अरूपी तत्त्व दिखाई देता है। ऐसा है, इस जगत् में आप जो आँखों से देखते हो, कानों से सुनाई देता है, जीभ से चख पाते हो, नाक से सूंघ पाते हो, यहाँ पर स्पर्श होता है, क्या वे वस्तुएँ हैं? वह वस्तु नहीं है, वस्तु की अवस्थाएँ हैं। आप जो देख रहे हो, वह सब अवस्थाओं को ही देखा है। तत्त्व की अवस्थाएँ, पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) तत्त्व की अवस्थाएँ, चेतन तत्त्व की अवस्थाएँ, काल की भी अवस्थाएँ। तत्त्व की उन सभी अवस्थाओं को देख रहे हो आप। मूल तत्त्व स्वरूप से देखा जाए तो कल्याण हो जाएगा। तत्त्व दृष्टि, अवस्था दृष्टि जब तक उसकी दृष्टि अवस्था वाली है, तब तक उसे जगत् दिखाई देगा और जब तत्त्व-दृष्टि हो जाएगी तो तत्त्व दिखाई देगा। अवस्थाएँ दिखाई देंगी लेकिन अवस्थाओं को 'वह' खुद की नहीं मानेगा। इस ज्ञान के बाद आपकी दृष्टि तत्त्व-दृष्टि हो गई है इसलिए तत्त्व को देखना सीखे हो और अवस्थाओं को भी देख सकते हो लेकिन अवस्था अपना स्वरूप नहीं है। ऐसा जानते हो कि अवस्था विनाशी है, रिलेटिव है। रिलेटिव, रियल, दोनों को देख सकते हो न! अवस्थाएँ रिलेटिव हैं और जो रियल है, वह तत्त्व है। प्रश्नकर्ता : दादा, आत्मा से तो सिर्फ तत्त्व को ही देखा जा सकता है न? आत्मा, आत्मा तत्त्व को ही देखता है न? वह फेज़िज़ को नहीं देखता न?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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