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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) दादाश्री : यह ऑक्सीजन मूल तत्त्व नहीं है। मूल तत्त्व तो परमानेन्ट होता है। मूल तत्त्व किसे कहते हैं ? जो कम नहीं होता और बढ़ता नहीं है। कोई चेन्ज नहीं होता। ऑक्सीजन मूल तत्त्व नहीं है, हाइड्रोजन मूल तत्त्व नहीं है, पानी भी मूल तत्त्व नहीं है। २४२ बाकी सब कम-ज़्यादा होता रहता है । मूल तत्त्व के अलावा प्रत्येक चीज़ कम-ज़्यादा होती रहती है, गुरु-लघु होती है और मूल तत्त्व अगुरुलघु है। पानी मूल तत्त्व की अवस्था है, तेज भी अवस्था है, वायु और पृथ्वी भी मूल तत्त्व की अवस्थाएँ हैं । एक ही तत्त्व की, जड़ तत्त्व की चार अवस्थाएँ हैं। यानी समझना तो पड़ेगा न ! विज्ञान के सामने गप्प नहीं चलेगी। संसार इसे नहीं समझ सकता। समझने में बहुत देर लगेगी। सही बात को समझेंगे तो हल आएगा, वर्ना 'मेरा सही है' ऐसा करने जाएँगे तो कभी भी हल नहीं आएगा। सामने वाले के आत्मा को स्वीकार होना चाहिए, वर्ना यह एक्सेप्ट करने जैसा है ही नहीं । अहंकार में हैं चार तत्त्व... प्रश्नकर्ता : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, इन पाँच तत्त्वों से कौन से गुण उत्पन्न होते हैं ? दादाश्री : यह पूरा शरीर पाँच तत्त्वों से बना है। पूरा ही शरीर । फिर मन, इगोइज़म वगैरह सभी कुछ, इन पाँच तत्त्वों से ही बना है I यदि कोई पूछे कि यह इंसान ठंडा क्यों हो गया ? तो कहते हैं कि अहंकार किससे बना है ? वायु से, पानी से और मिट्टी से । वायु और पानी को विलय होने में देर ही कितनी लगती है ? दस्त हो जाए तो भाग-दौड़ करके रख देता है । कहाँ गया आपका अहंकार ? अर्थात् यह अहंकार किससे बना हुआ है, वह तो देखो। वायु से, पानी से, तेज से और मिट्टी से । विनाशी चीज़ों से बना हुआ अहंकार का विनाश हो जाता है न! और फिर वापस उस अहंकार में भी अविनाशी तत्त्व है। सभी तत्त्व तो उसमें मिले हुए ही हैं न, अविनाशी भी ? आकाश भी
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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