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________________ (२.२) गुण व पर्याय के संधि स्थल, दृश्य सहित २११ प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि 'जब हम ज्ञान देते हैं तब आत्मा और देह को अलग कर देते हैं, तो इन दोनों को अलग करने वाले को कौन देखता है? दादाश्री : दो चीजें हैं जो देखती हैं। एक तो प्रज्ञा है और प्रज्ञा का काम खत्म हो जाने के बाद फिर आत्मा है। आत्मा ज्ञायक के रूप में रहता है। प्रज्ञा से लेकर आत्मा तक 'देखने वाला' है। प्रज्ञा का काम खत्म होने पर आत्मा खुद ज्ञायक बन जाता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह जो आत्मा का देखना व जानना कहा है, तो वह द्रव्यों को जानता है? दादाश्री : हं! प्रश्नकर्ता : वह द्रव्यों को, द्रव्यों के गुणधर्मों को और द्रव्यों के पर्यायों को किस प्रकार से जानता है, उसमें क्या-क्या देख सकता है? उसका एक्ज़ेक्ट उदाहरण दीजिए न ! दादाश्री : 'ये किसके गुणधर्म हैं', ऐसा सब जानता है। पुद्गल के गुणधर्म हैं या चेतन के गुणधर्म हैं। फिर अन्य सभी गुणधर्मों को भी जानता है। आकाश के गुणधर्म क्या हैं, ऐसा सब भी जानता है। फिर काल के क्या गुणधर्म हैं, उन्हें भी जानता है। फर्क, प्रज्ञा और पर्याय में प्रश्नकर्ता : आत्मा का पर्याय यानी कि कोई ऐसा उदाहरण देकर बताइए ताकि समझ में आए कि इसे आत्मा का पर्याय कहते हैं। दादाश्री : आप चंदूभाई की भूल देख लेते हो न! क्या वह भूल फिर से दिखाई देती है? प्रश्नकर्ता : नहीं! वह फिर नहीं दिखाई देती। दादाश्री : फिर से नहीं दिखाई देती इसलिए उसी को पर्याय कहते हैं। जो हमेशा आत्मा के साथ रहता है, वह ज्ञान कहलाता है, गुण
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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