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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) प्रश्नकर्ता : तो फिर 'मैं' में और दर्शन में संबंध हुआ न ? दादाश्री : कोई भी संबंध नहीं है । प्रश्नकर्ता : क्यों ? उस मिथ्या दर्शन के कारण से ही 'मैं' है न! यदि ऐसा नहीं है, तो कैसा है ? तो हकीकत क्या है, इस 'मैं' की ? दादाश्री : रोंग बिलीफ है। प्रश्नकर्ता : क्योंकि उस रोंग बिलीफ में परिवर्तन हो गया है न, तो ऐसा दिखाई देता है कि 'मैं' विलय हो गया । जब किसी भी अवस्था में 'मैं' आने लगता है और बिलीफ में परिवर्तन होता है तब ऐसा दिखाई देता है कि 'मैं' विलीन हो गया । १८४ दादाश्री : राइट बिलीफ बैठने पर वह 'मैं' चला जाता है। हमेशा रोंग बिलीफ से ही खड़ा होता था । ( दर्शन, वह आत्मा का शाश्वत गुण है और बिलीफ अहम् को हो गई है और वह विनाशी है, इसलिए दोनों के बीच संबंध नहीं है ।) प्रश्नकर्ता : ठीक है । दादाश्री : यदि हमने दोपहर में भूत की किताब पढ़ी हो और रात को सो रहे हों, तब रात को अकेले सोते समय पास वाले रूम में यदि प्याला खड़के तो तुरंत ही मन में ऐसा लगता है कि यहाँ तो कोई भी नहीं है, फिर यह कौन है ... एकदम से अंदर भूत का भय घुस जाता है तो वह कितने बजे तक... कब तक रहता है ? प्रश्नकर्ता: सुबह तक । सुबह दिन उगने तक। दादाश्री : सुबह जब तक वह बात स्पष्ट नहीं हो जाती है तब तक रहता है। उसके बाद राइट बिलीफ बैठने पर वह खत्म हो जाता है न कि यह तो गलत बात है, यह कुछ भी नहीं है । इस प्रकार से यों यह रोंग बिलीफ से चलता ही रहता है, भूत का असर । तो कितने ही जन्मों बाद आपका यह असर गया है (यह ज्ञान मिलने पर ) !
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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