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प्रतिष्ठित आत्मा उत्पन्न नहीं होता और पुराना प्रतिष्ठित आत्मा डिस्चार्ज होता रहता है।
'आप' व्यवहारिक कार्य में मस्त रहते हो तो व्यवहार आत्मा और 'आप' यदि निश्चय में मस्त रहते हो तो 'आप' 'निश्चय आत्मा' हो। मूलत: 'आप' और 'आप' ही हो लेकिन कहाँ बरत रहे हो उस पर आधारित है।
व्यवहार आत्मा या प्रतिष्ठित आत्मा, वही अहंकार है। जिसमें एक सेन्ट भी चेतन नहीं है।
__ आत्मा का कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन अनुपचरित व्यवहार का प्रमाण है ही। कोई भी उपचार किए बिना शरीर बन गया। लोगों ने उसके लिए कह दिया कि भगवान ने बनाया।
अनुपचरित व्यवहार क्या है?
लौकिक दृष्टि से जो, कुछ भी नहीं करने से होता है, वह अनुपचरित व्यवहार है।
बाकी, वास्तव में देखा जाए तो हर व्यवहार सिर्फ अनुपचरित है, क्योंकि वह भी संयोगों की वजह से हो जाता है। अरे, विशेष भाव भी दो तत्त्वों के पास-पास आने से अपने आप ही हो जाता है न! सैद्धांतिक रूप से हर व्यवहार अनुपचरित है, लेकिन ज्ञानी की दृष्टि से!
सूर्य की उपस्थिति में संगमरमर गर्म हो जाता है और जो ऊर्जा उत्पन्न होती है, वह कौन करता है? प्रेरक कौन है? कोई भी नहीं। इसी प्रकार आत्मा प्रेरणा नहीं देता है वर्ना वह बंधन में आ जाएगा। यह प्रेरणा है पावर चेतन की। दूसरी चीज़ मिली इसलिए पावर चेतन बन गया।
और अगर हट जाए तो फिर कुछ भी नहीं है। ज्ञानी, मोक्षदाता पुरुष दोनों को अलग कर देते हैं।
(४) प्रथम फँसाव आत्मा का जगत् अनादि अनंत है। उसे बनाने वाला, चलाने वाला कोई नहीं
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