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________________ (१.११) जब विशेष परिणाम का अंत आता है तब... १४१ दादाश्री : स्वपरिणाम जानता है कि यह विशेष परिणाम है। उससे इमोशनलपन हो रहा है। यह खराब दिखाई देता है, फलाना दिखाई देता है, यह नालायक है, ऐसा है, वैसा है', ऐसा सब कहता है, वे सभी सिर्फ विशेष परिणाम हैं। ये सब विशेष परिणाम हैं। जो ऐसा जानता है कि ये सब विशेष परिणाम हैं, वही स्वपरिणाम है। पूरा ही पुद्गल 'व्यवस्थित' के कब्जे में है और आप खुद अपने स्व के कब्जे में हो। आप पुद्गल के गुणों और पुद्गल की अवस्थाओं को आपकी खुद की अवस्था मानते हो, वही विभाव है। लेकिन यदि पुद्गल की अवस्थाओं को और पुद्गल के गुणों को अपने नहीं मानो तो वह स्वभाव है। जो अच्छा-बुरा दिखाई देता है, वे पुद्गल की विभाविक अवस्थाएँ हैं। इसमें यह अच्छा और यह बुरा ऐसे विभाग मत बनाना। अच्छे और बरे को अलग मत करना। अच्छा भी विभाविक है और बुरा भी विभाविक है। आगे? प्रश्नकर्ता : 'विशेष परिणाम में अच्छा-बुरा नहीं होता।' दादाश्री : विशेष परिणाम में यह अच्छा और यह बुरा ऐसा नहीं है। लोग विशेष परिणाम में अच्छा-बुरा मानते हैं क्योंकि अभी भी उनमें वे पहले वाले संस्कार हैं, सामाजिक संस्कार हैं। क्या गाय-भैंसों के लिए कुछ अच्छा-बुरा होता है? क्या वे कोर्ट में गए? दावा दायर करते हैं कोई ? अच्छा-बुरा कहने से संसार खड़ा हो गया है। वह तो परिणाम ही है। उसमें अच्छा-बुरा क्या है? ऐसा है कि यदि गरम कढ़ी परोसी जाए तब लोग कहते हैं कि 'गरम है' और ठंडी परोसी जाए तब कहते हैं, कि 'बिल्कुल ठंडा ही परोसते हैं। गरम और ठंडा कहने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन यों पक्षधर बन गया है। प्रश्नकर्ता : गरम का पक्षधर है इसलिए उसे ठंडा अच्छा नहीं लगता। दादाश्री : लेकिन उसे ज़्यादा गरम लगता है। तो भाई, गरम तो
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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