SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० आप्तवाणी-१४ (भाग-१) मिलते हैं और विशेष भाव उत्पन्न होता है, तब फिर क्या वे अपने ओरिजनल स्वतंत्र गुणों को खो देते हैं? दादाश्री : नहीं, स्वतंत्र गुण वैसे के वैसे ही रहते हैं। विशेष गुण उत्पन्न होते हैं। प्रश्नकर्ता : मान लीजिए कि यह दूध है, दूध में से दहीं बना। यह विशेष भाव से ही हुआ है न? दादाश्री : विशेष भाव से। प्रश्नकर्ता : तो फिर, उसका दूध का गुण तो हुआ न, स्वतंत्र गुण? दूध का स्वतंत्र गुण... दादाश्री : दूध कोई 'वस्तु' नहीं है। वह तो समझाने के लिए एक स्थूल उदाहरण है, एक्जेक्ट 'वस्तु' नहीं है। 'वस्तु' अपने स्वभाव सहित अविनाशी होती है। दूध को 'वस्तु' नहीं कहा जा सकता न! इस जगत् में आँखों देखी कोई भी वस्तु, 'वस्तु' नहीं कही जा सकती। सुनी हुई कोई वस्तु, 'वस्तु' नहीं कही जा सकती। 'वस्तु' (शाश्वत) होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : क्या दूध विशेष भाव है? दादाश्री : दूध तो 'वस्तु' कहलाएगा ही नहीं न! जो छः अविनाशी तत्त्व हैं, उन्हें 'वस्तु' कहा जाता है जबकि दूध तो अवस्था है। अर्थात् ये छः तत्त्व, उन दो तत्त्वों के मिलते ही विशेष परिणाम उत्पन्न हो जाता है। जो विपरिणाम को जाने, वही स्वपरिणाम प्रश्नकर्ता : 'ये विशेष परिणाम हैं, यदि खुद ने वह जान लिया तो वही स्वपरिणाम है। विशेष परिणाम में अच्छा-बुरा नहीं होता। विशेष परिणाम बंद हो जाएँ तो उस स्वभाव-परिणाम को ही मोक्ष कहा जाता है।' यानी इसमें किस प्रकार से है, वह सब समझाइए न।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy