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________________ (१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण जैसे यदि स्टीम कोल (कोयला) शोर मचाए, 'देखो मुझे ठंड लग रही है, देखो ठंड लग रही है!' तो हम क्या कहेंगे? 'अरे भाई, तेरी वजह से तो बल्कि सब की ठंड गायब हो जाती है! तुझे कैसे ठंड लग सकती है?' यदि ये सूर्यनारायण शोर मचाएँ कि 'मुझे ठंड लग रही हैं, ठंड लग रही हैं!' तब वे तो सिर्फ एक सूर्यनारायण हैं लेकिन यह आत्मा तो हज़ारों सूर्यनारायण हैं, वहाँ पर यदि वे खुद कहें कि 'मुझे ठंड लग रही है ! ओढ़ाओ, ओढ़ाओ।' क्या ऐसा नहीं कहते हो सर्दी की ठंड में? और फिर कहता है कि कडाकेदार ठंड पड़ी! अरे भाई, ठंड तेरे ऊपर कैसे पड़ सकती है? ठंड तो गरम चीज़ पर पड़ती है या ठंडी चीज़ पर? तू न तो गरम है, न ही ठंडा, तुझ पर ठंड कैसे पड़ सकती है? लेकिन देखो मान बैठे हैं, देखो मान बैठे हैं ! इतनी रोंग बिलीफें भरी हुई हैं कि इनका अंत ही नहीं आता! यह जो विभाविक है, यह तो व्यवहार ही है। प्रतिक्षण उदय बदलते रहते हैं। अब, फिर उसमें भी विरोधाभास रहता है। स्वभाव में विरोधाभास नहीं है, अविरोधाभासी है। उसे कोई दुःख स्पर्श नहीं करता। एटमबम गिरे तो भी छु नहीं सकता, ऐसा है यह स्वाभाविक निश्चय। या फिर वह एटमबम कोई नुकसान नहीं पहुँचाता।। अंत में तो अलग रखना है, जीतना नहीं है प्रश्नकर्ता : दादा, यहाँ पर (इस पुस्तक में) शब्द 'जीत संगदोषा' कहा हुआ है। जीतने को कहा है? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : आप जो कहते हैं, उसमें अलग रखना है? दादाश्री : हाँ, जीतना तो निम्न स्तर का है, जब तक निम्न स्टेज में है तब तक जीतना है। निम्न स्टैन्डर्ड में भी अंत में तो अलग ही होना पड़ेगा। यह जो संगदोष हुआ, वह किसके अधीन है? संगदोष का छूटना किसके अधीन है ? बहुत समय बाद संगदोष छूटता है। संगदोष होने के बाद में चौरासी लाख योनियों में तो जन्म होता ही है लेकिन कितनी ही
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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