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(१.४) प्रथम फँसाव आत्मा का
जाएगा। (व्यवहार) आत्मा नहीं बिगड़ा है, कुछ भी नहीं बिगड़ा है, ज़रा सी बिलीफ बिगड़ी है।
प्रश्नकर्ता : अहंकार के लय हो जाने के बाद जीव किस आधार पर रहेगा?
दादाश्री : इस बिलीफ को हटा दिया जाए न, तो अहंकार का लय हो जाएगा। आपकी दृष्टि यों (संसार की तरफ) है तब तक अहंकार है और दृष्टि बदल जाए तो अहंकार का पूर्णतः लय हो जाएगा। खुद के स्वरूप की ओर दृष्टि हुई कि अहंकार लय हो जाएगा। फिर मूल आत्मा को किसी भी आधार की ज़रूरत नहीं रहेगी। निरालंब है!
क्या मुखड़ा नहीं दिखाता दर्पण कभी? प्रश्नकर्ता : अज्ञानता तो मेरे आत्मा पर बाद में चढ़ी, तो क्या मूलतः मेरा आत्मा ज्ञानी था?
दादाश्री : वही मैं आपको बता रहा हूँ। मूलतः तो यह आत्मा संपूर्ण प्रकाश वाला है। दर्पण में कभी हम न दिखाई दे ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता न! लेकिन अगर बाहर की हवा खराब हो जाए, वातावरण खराब हो जाए तो फिर हम दर्पण में दिखाई नहीं देंगे, ऐसा होता है न! होता है या नहीं होता?
प्रश्नकर्ता : कोहरा हो या वैसा कुछ तो कभी ऐसा हो सकता है।
दादाश्री : तो वातावरण का असर हो गया है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि आत्मा ही खुद परमात्मा है तो उसे ऐसा सब क्यों होता है ? वह मोह में क्यों पड़ता है ?
दादाश्री : कुछ भी नहीं हुआ है, मोह में नहीं पड़ा है, फँस गया है। खुद अपने आप तो कोई पड़ेगा ही नहीं।
पूरा व्यवहार संयोगों से भरा हुआ है। जब यहाँ से उसे सिद्ध पद