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________________ ४८ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) चलने लगे? मिथ्यात्व दर्शन से। सम्यक् दर्शन हो जाए तो ये हथियार वापस सीधे हो जाएँगे। ऐसा है, यह दृष्टि तो कैसी है कि हमेशा ही, यों बैठे हों तो हमें एक लाइट के बदले दो लाइट दिखाई देती हैं। आँख ज़रा यों हो जाए (दबाव आ जाए) तो दो दिखाई देता है या नहीं दिखाई देता? अब वास्तव में तो एक ही है फिर भी दो दिखाई देते हैं। हम प्लेट से चाय पीते हैं तब कई बार प्लेट के अंदर जो सर्कल होता है न, वह दो-दो दिखाई देते हैं। इसका क्या कारण है? कि दो आँखें हैं इसलिए सबकुछ डबल दिखाई देता है। ये आँखें भी देखती हैं और वे अंदर वाली आँखें भी देखती हैं लेकिन वह मिथ्या दृष्टि है। अतः यह सब उल्टा दिखाती है। यदि सीधा दिखाए तो सभी दुःखों से रहित हो जाएगा, सर्व उपाधि रहित हो जाएगा। आत्मा ने कर्म नहीं भोगा है। अहंकार ने कर्म नहीं भोगा है। अहंकार ने विषय भोगा ही नहीं है, फिर भी अहंकार सिर्फ मानता ही है कि 'मैंने भोगा'। कृष्ण भगवान कहते हैं, 'विषय विषयों में बर्तते हैं, वह सब स्वाभाविक है। उसमें अहंकार कहता है, 'मैं कर रहा हूँ' इसलिए फिर भुगतना पड़ रहा है। अहंकार गलत आरोपित भाव है, इसलिए कर्म बंधन होता है। 'मैं कर रहा हूँ' कहा, इसलिए कर्म बंधन होता है। 'मैं कर रहा हूँ' ऐसा भान चला जाए तो कर्म छूट जाएँगे। उसके बाद संवरपूर्वक निर्जरा (नया कर्म बीज नहीं डलें, बिना कर्मफल पूरा हो जाना) होगी। प्रश्नकर्ता : कर्तापन की मान्यता किस तरह से उत्पन्न हुई? दादाश्री : रोंग बिलीफ हुई, उससे अहंकार उत्पन्न हुआ कि 'मैं कर रहा हूँ'। इसमें अहंकार कोई चीज़ है ही नहीं, फिर भी ऐसा है कि शरीर पर अहंकार का फोटो पड़ता (असर दिखाई देता) है। पौद्गलिक रूप से शरीर पर फोटो पड़े, ऐसा है। वास्तव में अहंकार कुछ भी नहीं करता फिर भी वह अहंकार ऐसा मानता है कि 'मैं कर रहा हूँ', बस इतना ही है। सिर्फ बिलीफ रोंग है। बिलीफ सुधारे तो सबकुछ बदल
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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