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________________ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) तो यह सब बार-बार आता रहता है। इसीलिए तो त्याग करने पड़ते हैं, नहीं तो क्या कहीं त्याग करने की ज़रूरत है? यदि आत्मा को समझ लिया है तो त्याग नहीं करना है और नहीं समझा है तो तू अपनी तरह से त्याग करता ही रह, अनंत जन्मों तक त्याग करता रह न ! त्यागी और आत्मा, दोनों अलग हैं। त्यागी पुद्गल का व्यापारी है। प्रश्नकर्ता : पावर और चैतन्य दोनों अलग-अलग हैं ? दादाश्री : जितने अलग सूर्य और उससे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा हैं, उतने ही अलग हैं। सूर्य की वजह से ऊर्जा उत्पन्न होती है, उतना अलग है। पावर में सूर्य का कोई कर्तापन नहीं है। उसमें दूसरी चीज़ मिल गई इसलिए ऊर्जा उत्पन्न होती है। यदि आप यहाँ पर बड़ा सा मोटा काँच रख दो तो उस काँच की वजह से, दूसरी कोई चीज़ मिल जाए तो बहुत बड़ा वो हो जाता है और उससे नीचे सब जलने लगता है। उसमें सूर्य को कोई लेना-देना नहीं है। दूसरी जो चीज़ आ मिली है, यह उसकी वजह से है। उसे हटा लिया जाए तो फिर कुछ भी नहीं है। अब हटे किस तरह से? प्रश्नकर्ता : हटाने वाला मिलेगा तो हटा देगा। दादाश्री : हटा देगा। इसलिए कृपालुदेव ने कहा है कि मोक्षदाता पुरुष के मिलने पर तुम्हारी मुक्ति होगी। वे मोक्ष का दान देने आए होते हैं! वे दान देने वाले कैसे होंगे? कृपालुदेव ने ही यह शब्द लिखा है कि 'मोक्षदाता!' बाकी किसी भी जगह पर मोक्षदाता शब्द नहीं लिखा गया है !
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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