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________________ किसी ने ठीक ही कहा हैं_ 'व्याकरणात् पदसिद्धिः पदसिद्धेरर्थ निर्णयो भवति । अर्थात् तत्त्वज्ञानम् , तत्त्वज्ञानात् परं श्रेयः ।। अर्थः- व्याकरण से पद की सिद्धि होती है । पदसिद्धि से अर्थ का निर्णय होता है । अर्थनिर्णय से तत्त्वज्ञान की प्राप्ति होती हैं और तत्त्वज्ञान से परमश्रेय (मोक्ष) की प्राप्ति होती है ।' इस प्रकार इस व्याकरण के बोध का अनंतर फल पदं सिद्धि और परंपर फल मोक्ष की प्राप्ति है। संस्कृत साहित्य के बोध के लिए संस्कृत व्याकरण का बोध अनिवार्य है। संस्कृत व्याकरण भी अधिक संख्या में उपलब्ध हैं, परन्तु हमें जो विशेषताएँ सिद्ध हैमव्याकरण में देखने को मिलती हैं, वह शायद ही अन्यत्र मिल सकेगी। - इस व्याकरण की शुद्धता, सरलता और सांगोपांगता को देखकर ही तत्कालिक विद्वान् ने गाया होगा भातः ! संवृणु पाणिनि प्रलपितं कातंत्रकन्था वृथा, मा कार्षीः कटुशाकटायन वच: क्षुद्रेणचान्द्रेण किम् ? किं कण्ठाभरणादिभिर्बठरयस्यात्मानमन्यैरपि, श्रूयन्ते यदि तावदर्थमधुरा श्रीसिद्ध हेमोक्तयः ।।९।। (प्रबंध चिंतामणी) अर्थ : अरे भाई ! यदि श्री सिद्ध हेम व्याकरण के अर्थ मधुर वचन सुनाई दे रहे है...तो फिर पाणिनि के प्रलाप को रोक दे, कातंत्र की कथा को व्यर्थ मान, शाकटायन के कटुवचन का उच्चार मत कर, अल्प प्रमाणवाले चान्द्र व्याकरण से भी क्या मतलब है ? और कन्ठाभरण आदि अन्य व्याकरणों से भी अपने आपको जड क्यों बनाते हो ? . सिद्धहेम व्याकरण की अपनी मौलिक विशेषताएँ हैं 1. सूत्र रचना अत्यन्त ही सरल है। 2. भिन्न भिन्न विषयों के अनुसार भिन्न प्रकरण किए गए है, जिससे तत्सम्बन्धी विषय को जानकारी उसी प्रकरण से हो जाती है । .. 3. सूत्रों को संक्षिप्त करने के लिए अनेक संज्ञाएँ की गई है । उन संज्ञाओं को समझ लेने के बाद आगामी विषय को समझने में देरी नहीं लगती है। 4. पाणिनि व्याकरण की संज्ञाएँ दुर्गम और क्लिष्ट हैं, जब कि सिद्ध हेम की संज्ञाए अत्यन्त सरल और सुवाच्य है।
SR No.034255
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 01
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages658
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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