________________
15. द्वयाश्रय महाकाव्य-संस्कृत व्याकरण के सूत्रों के प्रयोग के साथ साथ इसमें चौलक्यवंश
का विस्तृत वर्णन है।
प्राकृतद्वयाश्रय में प्राकृत सूत्रों के प्रयोग के साथ कुमारपाल के चरित्र का संदर वर्णन है । 16. छंदोनुशासन-764 श्लोक प्रमाण इस ग्रंथ में छंद संबंधी विस्तृत जानकारी है.। 17. त्रिषष्ठी शलाका पुरुष चरित्र-इस ग्रंथ में चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9
वासुदेब और 9 प्रति वासुदेव के चरित्रों का विस्तृत वर्णन है । यह प्रथ 36000 श्लोक
प्रमाण है। 18. परिशिष्ट पर्व : इसमें भगवान महावीर से लेकर वज्रस्वामी तक के जैन . इतिहास का भव्य
वर्णन है । यह ग्रंथ 3500 श्लोक प्रमाण है । 19. अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका-32 श्लोक प्रमाण इस ग्रथ में आचार्यश्री ने जैन दर्शन की
मान्यताओं का सुंदर संकलन किया हैं । इस पथ पर नागेन्दुगच्छीय आचार्यश्री मल्लिषेण
सूरिजी म. ने 3000 श्लोक प्रमाण स्याद्वादमंजरी नामक टीका रची है। 20. अयोग व्यच्छेदद्वात्रिंशिका-32 श्लोक प्रमाण इसमें महावीरदेव की स्तुति है। 21. प्रमाण मीमांसा-जो अपूर्णमात्रा में उपलब्ध है । . 22. वीतराग स्तोत्र-189 श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ में वीतराग के बास्तविक स्वरूप का बहुत ही
सुन्दर वर्णन किया है। 23. योग शास्त्र-इस ग्रन्थ में योग के स्वरूप का बहुत ही मार्मिक शैली से वर्णन किया गया
है । 12 प्रकाश में विभक्त इस ग्रन्थ पर आचार्यश्री ने 12570 श्लोक प्रमाण अत्यन्तही
विस्तृत टीका की रचना की है । इस का अपरनाम अध्यात्मोपनिषत् है । 24. महादेव स्तोत्र-44 श्लोकप्रमाण इस ग्रन्थ में 'महादेव' के स्वरूप का वर्णन है ।
इसके सिवाय आचार्यश्रीने सप्तसंधान महाकाव्य, द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, अर्हन्नीति आदि अनेक
ग्रन्थो की भी रचना की है । सिद्धहेम व्याकरण की उपयोगिता :-अपने मानसिक विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए हमें किसी न किसी 'भाषा' Language का अवलंबन लेना पडता हैं और उस भाषा के सही प्रयोग के लिए उस 'भाषा' के व्याकरण को जानना अत्यन्त ही अनिवार्य है ।
___ संस्कृत यह देव वाणी (भाषा) है । अधिकांशतः अन्य भाषाओं की उत्पत्ति का आधार संस्कृत भाषा ही है । संस्कृत विद्वभोग्य भाषा है । पूर्वकालिक महापुरुषों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए इस भाषा का भी ठीक टीक अवलंबन लिया है। आस्तिक दर्शनकारों के अधिकांश ग्रन्थ इसी भाषा में उपलब्ध है। उन महापुरुषों की अमूल्य निधि के बोध के लिए भाषा का ज्ञान अत्यन्त ही अनिवार्य है।
शास्त्र को यदि निधि की उपमा दी जाय तो व्याकरण को चाबी की उपमा देना ही योग्य होगा !