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हो है और यह अर्थ ठीक भी है, परन्तु यहाँ पर स्थानक शब्द का अर्थ कुछ विशेषता को लिये हुए है, उसी का दिग्दर्शन यहाँ पर कराया जाता है।
जैनागमों में पंचमहाव्रतधारी संयमशील मुनियों के निवासस्थान का उपाश्रय के नाम से उल्लेख किया गया है अर्थात् ध्यान के लिये जैन मुनि को शास्त्र में जिन-जिन स्थानों में रहने की आज्ञा दी है, वे स्थान उपाश्रय के नाम से कहे गये हैं। उसो उपाश्रय या बसती को 'स्थानक' नाम से कहने की परम्परा चली आती है, अथवा ऐसे कहें कि उपाश्रय और स्थानक ये दोनों शब्द पर्यायवाची अर्थात एक हो अर्थ के वाचक हैं । तात्पर्य यह कि मूर्तिपूजा को आगमविहित मानने और न मानने वाली इन दो परम्पराओं में क्रमशः उपाश्रय और स्थानक शब्द का व्यवहार होने लगा। इन दोनों शब्दों में अर्थगत कोई भेद नहीं, परन्तु सम्प्रदाय भेद से एक हो अर्थ के वाचक दो शब्द ग्रहण किये गये, जिनमें किसी प्रकार का भी अनौचित्य प्रतीत नहीं होता । एक सम्प्रदाय में उपाश्रय शब्द प्रसिद्ध रहा जब कि दूसरी सम्प्रदाय ने उसीके अनुरूप भाव को अधिकता देते हुए उससे कुछ अधिक गुणनिष्पन्न स्थानक शब्द को ग्रहण किया । ये दोनों ही युक्तिसंगत और शास्त्रानुमोदित नाम हैं । इसमें विवाद
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