________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शब्दों का सम्बन्ध एकमात्र साधु वर्ग से ही था और बाद में वह दोनों सम्प्रदायों में रूढ़ हो गया, इसी प्रकार संयमरूप स्थान में निवास करनेवाले साधु वर्ग में प्रयुक्त होने वाला स्थानकवासी शब्द, बाद में उसके अनुयायी वर्ग में प्रयुक्त होने से सारे सम्प्रदाय का ही इस नाम से उल्लेख होने लगा।
स्थानकवासी इस समस्त पद में स्थानक और वासी ये दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं। स्थानक और स्थान ये दोनों एक ही अर्थ के वाचक हैं । स्थान शब्द का अर्थ है ठहरने को जगह और वासीका अर्थ है उसमें निवास करनेवाला। 'स्थीयते अस्मिन्निति स्थानं, स्थानं एवेति स्थानकं, स्थानके वसतीति स्थानकवासी' अर्थात् शास्त्रविहित द्रव्य और भाव रूप स्थान में निवास करनेवाला स्थानकवासी कहा व माना जाता है।
कोशादि में स्थान शब्द के अनेक अर्थ देखने में आते हैं। उनमें द्रव्य और भाव रूप दोनों स्थानों का ग्रहण
के स्था धातु से “करणाधारे चानट् [४।४।९ शा० व्या०] इस सूत्र से अनट् प्रत्यय होकर स्थान शब्द सिद्ध होता है यथा स्थोयते अस्मिन्निति स्थानम् , फिर स्वार्थ में क प्रत्यय होकर स्थानक बना तथा वास शब्द से शोलेजातेः इस सूत्र द्वारा णित् प्रत्यय होकर वासी शब्द बना, वसति तच्छील इति वासी।
For Private and Personal Use Only