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समाधिमरण ।
मृत्यु होनेसे हानि कौन है, याको भय मत लावो । समतासे जो देह तजोगे, तो शुभतन तुम पावो ॥२॥ मृत्यु मित्र उपकारी तेरो, इस अवसरके माहीं। जीरन तनसे देत नयो यह, या सम साहू नाहीं ॥ या सेती इस मृत्यु समयपर, उत्सव अति ही कीजै । क्लेशभावको त्याग सयाने, समताभाव धरीजै ॥ १०॥ जो तुम पूरब पुण्य किये हैं, तिनको फल सुखदाई । मृत्यु मित्र बिन कौन दिखावे, स्वर्गसंपदा भाई ॥ राग द्वेषको छोड़ सयाने, सात व्यसन दुखदाई । अन्त समयमें समता धारो, परभवपंथ सहाई ॥११॥ कर्म महा दुठ बैरी मेरो, तासेती दुख पावे । तन पिंजरेमें बंध कियो मोहि, यासों कौन छुड़ावै ॥ भूख तृषा दुख आदि अनेकन, इस ही तनमें गाढ़े। मृत्युराज अब आय दयाकर, तन पिंजरेसे काढ़े ॥१२॥ नाना वस्त्राभूषण मैंने, इस तनको पहराये । गंधसुगन्धित अतर लगाये, षटरस असन कराये ॥ रात दिना मैं दास होयकर, सेव करी तनकेरी । सो तन मेरे काम न आयो, भूल रहो निधि मेरी ॥१३॥ मृत्युरायको शरन पाय तन, नूतन ऐसो पाऊँ। जामें सम्यकरतन तीन लहि, आठों कर्म खपाऊँ ।
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