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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की इच्छा प्रगट की, उस पर बादशाह ने थानसिंह को कहा कि अपने शाही बाजे के साथ धूमधाम पूर्वक आपको अपने स्थान पर पहुंचा दो, हुक्म होते ही सब शाही फौज बाजे और बड़े बड़े अफसर एवं अबुल फजल के साथ थानसिंह ने सूरिजी को कर्णराजा के महल में पहुँचा कर सब अपने अपने स्थान की ओर रवाना हो गये, अबुल कजल ने भी दरबार में जाकर सूरिजी को पहुंचा देने की खबर दे दी। फिर रात को महल में अकबर और अबुलफजल बैठ कर सूरि जी के सम्बन्ध में अन्योन्य बातचीत करने लगे, उस समय बादशाह ने सूरिजी से ईश्वर और खुदा के विषय में जो बातें की थी वो कह सुनाई और कहा कि सूरिजी वास्तविक तपस्वी और पूरा फकीर है इनको दूर देश से आमंत्रण भेज कर बुलाया है और उन्होंने अपने लिये इतना कष्ट किया है, तो जिस तरह से ये महात्मा संतुष्ट हो कर जावे वैसा ही करना आपका फर्ज है, इस पर अबुल फजल बोला कि गरीबपरवर ! उस दिन सभा में मोदी के मुख से सुना था कि कंचन कामिनी का स्पर्श भी नहीं करते हैं तो किस चीज से संतुष्ट करेंगे ? हां हो सकता है कि पुस्तक भंडार देकर अपना फर्ज अदा कर देंगे क्योंकि वह ज्ञान के साधन भूत होने से इन्हों के विशेष उपयोगी ही होगा, बादशाह ने इस बात का अनुमोदन करते हुए कहा कि वह कैसे त्यागी हैं इस विषय में कल और परीक्षा करेंगे इतना कह कर अपने अपने आराम रूम में चले गये। दूसरे दिन अकबर ने सूरिजी के साथ धर्म चर्चा करना प्रारम्भ किया, इस पर सूरिजी ने कहा हे सौम्य ? धर्म के अनेक मार्ग है मैंने आपको बतला दिया है किन्तु सबसे उत्तम धर्म अहिंसा ही है अहिंसा को पालने में सब का समावेश हो जाता है सब पापों में पाप हिंसा ही है जीवों को मारने वाला, मारने में सलाह देने वाला, शस्त्र से For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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