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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर बादशाह को सूरिजी के आगमन की सूचना देकर वापिस गुरु सेवा में उपस्थित हो गये। सूरिजी के निकट आगमन की खबर मिलते ही अकबर ने थानसिंह अमीपाल और भानुशाह आदि राजमान्य जैन साहुकारों को आज्ञा दी कि सरिजी महाराज को बड़े भारी ठाठबाठ से नगर प्रवेश करा कर विनय पूर्वक अपने दरबार में ले आओ, बादशाह का सख्त हुक्म होते ही बड़े बड़े अफसर और धनाढय जैन प्रतिष्ठित व्यक्ति अनेक हाथी घोड़े रथ नगारा निशान बाजा फौज आदि लेकर सरिजी के सामने सांगानेर पहुँचे, उन के साथ सूरिजी चलते हुए फतहपुर शहर के बाहर जगमाल कच्छवाहा के महल में एक दिन ठहरे । आप ने गंधार बदर से छः महीने का लम्बा विहार करते हुए सं. १६३६ ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी शुक्रवार के दिन फतेहपुर सीकरी नामक शहर में सकुशल प्रवेश किया, उस समय आपकी सेवा में सैद्धान्तिक शिरोमणि महोपाध्याय श्री विमलहगणि, अष्टोतरशतावधानी एवं अनेक नृपमनरंजक श्री शान्तिचंद्रगणि, पंडित सहजसागरगणि, हीर सोभाग्य काव्यकर्ता के गुरु श्री सिंहविमलगणि, वक्तृत्व और कवित्व कला में अद्वितीय निपुण तथा विजय प्रशस्ति महाकाव्य के रचयिता पंडित श्री हेमविजयगणि वैयाकरण चूडामणि पंडित लाभ विजयगणि और पंडित धनविजयगणि आदि १३ प्रधान शिष्य उपस्थित थे। दूसरे दिन प्रातःकाल अपने शिष्यों के साथ सूरिजी महाराज शाही दरबार में पधारे । उस समय थानसिंह ने अकबर को गुरुजी के दरबार में पधारने की खबर दी। सूचना पाते ही आवश्यकीय कार्य में संलग्न होने के कारण अकबर स्वयं न आकर अपने प्रिय प्रधान शेख अबुल फजल को सूरिजी के आतिथ्य सत्कार के लिए भेज कर उस कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने लगा, बादशाह का हुक्म पाते ही For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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