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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणि को अकबर से मुलाकात करने के लिये फतहपुर सीकरी रवाना कर आप स्वयं वृद्धावस्था के कारण धीरे धीरे चलते हुए लेरोतरानगर में पहुचे यहां के ठाकुर अर्जुन ने अकबर से आहूत सूरिजी को अपने मकान में लाकर खूब सत्कार किया, ठाकुर की बुरी आदत को सुन कर सूरि जी ने मीठे मीठे शब्दों में ऐसा उपदेश दिया कि ठाकुर को आदत हमेशा के लिये छोड़नी पड़ी, एवं उसने मांस मदिरा शिकार और पर स्त्री गमन आदि कुचालियों को जड़ मूल से उखाड़ फेंक दी वहां से सूरिजी चल कर आबू पहाड़ पर प्रसिद्ध मन्दिरों की यात्रा करके यथासमय सिरोही आ पहुँचे, वहां का राजा सुल्तानसिंह अत्यन्त समारोह पूर्वक सूरिजी की सेवा में सामने आया, और राजा ने समस्त नगर को अच्छी तरह सजा कर धूमधाम से आचार्य श्री का प्रवेशोत्सव कराया, इस प्रकार सूरिजी सादड़ी धरणशाह द्वारा निर्मापित राणकपुर तीर्थ, आउआ आदि नगरों में क्रमिक पर्यटन करते हुए यथा समय मेड़ता आ पहुँचे । मार्ग में आपके दर्शनार्थ उपाध्याय कल्याणविजयजी ने सादड़ी श्री संघ के साथ, एवं आउआ के नगरपति तल्हा सेठ ने अपने स्वामी भाई के साथ आकर अपने हृदय के उल्लास को पूरा किया। यानि खुब भाव से वंदना की, तल्लासेठ ने गुरुदेव की सेवा में आगन्तुक स्वामी भाई आदि सज्जनों को एक एक फिरोजो सिक्का (रुपया) भेंट दिया, इधर कल्याणविजयजी गुरुदेव की आज्ञा पाकर सादड़ी वापस लौट गये, सुल्तान साहिब मेड़ता नगर में आये हुए सूरिजी के स्वागत में अतिशय भाग लेता हुआ अपने को धन्य समझने लगा। विमल हर्ष उपाध्याय गुरुजी की आज्ञा पाकर अकबर से मिलने के लिये सिद्धपुर से चले थे किन्तु मध्यवर्ती मेड़ता नगर में आवश्यक कार्ययश ठहरने के निमित्त गुरुवर्य सूरि महाराज के दर्शन के पश्चात् उनकी आज्ञानुसार सिंहविमलगणि के साथ आगे बढे, स्वयं सूरिजी फतहपुर की ओर बढ़ते हुए सांगानेर नगर में पहुंचे जितने में उपाध्यायजी For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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