________________
(५०)
.... (१३) 'सागारिका गारेण' मुनि गृहस्थोंके देखतों आहार नहीं . करे एसा मुनि आचार है अगर आहार करते समय कोई. गृहस्थ आवे तों तथा मकामका धणी कहे कि यहांसे उठ जावें तों अन्यत्र जाके भी भोजन करे तो व्रत भंग नहीं होवे । .
(१४) माकुञ्चन प्रसारण, एकासने प्रमुख बेठों पछे खान खीणे छीक भाये इस कारणसे संकुच प्रसारण हो तो भी व्रत भंग न हो। - (१४) गुरुभ्युत्स्थानेन, एकासने प्रमुख. भोजन करनेकों बेठा हो उस समय गुरु तथा पहुणा मुनि भाया हों तो उठके खडे होनेपर भी व्रत भंग न हो।
(१५) एकाप्सना प्रमुख करनेवालोंको पाणीके छे आगार होते है। लेप कृत पाणी जेसे ओसामण, अमली, तथा दाक्षको पाणी ।
(१६) अलेपकत लेप रहीत जेसे कानीका पाणी तथा छासकी आच्छ आदि। - (१७) अच्छेणवा स्वच्छ निर्मक तीन उकालेका पाणी, । (१८) बहुलेप-चाबलो प्रमुखका पाणी ।
(१९) ससृष्ट-आटा प्रमुखसे खरडे हुवा पाणी । निस्मे आटाका रजकरण सहित ।
(२०) असंसृष्ट-रजकरण रहीत आटा प्रमुखका पाणी ।
उपर बतलाये हुवे ' आगार' व्रतोंके संरक्षण अर्थ है इस्मे मुनि तथा सुश्रावक द्रव्य क्षेत्र काल भावके जानकार अपने ग्रहन किये हुवे व्रतोंको निमलता पूर्वक पालन करनेकी कोशिश करना चाहिये। कोनसे कोनसे प्रत्याख्यानमें कितने कितने आगार होते है।