________________
(३८) कर्मरूपी भग्नि शान्त हो जाति है तथा इंधनके अन्दर अग्नि लगानेसे धूवा निकलके उध्वंगतिको गमन करता है एसे जीव कर्मरूपी अग्निकों छोड उर्ध्व गति गमन करता है। ... (६) "पूर्व प्रयोगगति" जेसे तीरके बाणमे पेस्तार खुब वेग भर दीया हो उस वेगके ज़ोरसे तीरसे छूटा हुवा बाण जाता है इसी माफीक पूर्व योगोंका वेग जेसे बाण जाता हुवा रहस्तेमें तीरका संग नहीं है केवल पूर्वके वेगसे ही चल रहा है इसी माफीक मोक्ष जाते हुवे जीवोंकों योगों कि प्रेरणा नहीं है किन्तु पूर्व योगसे ही वह जीव सात राज उर्ध्व गतिकर मोक्षमे जाता है जेसे बाण मुद्रत स्थानपर स्थित हो जाता है. इसी.माफीक जीव भी मोक्षक्षेत्र तक जाके वहांपर सादि अनन्त भांगे स्थित हो जाता है इस वास्ते हे गौतम अकर्मी जीवोंकों भी गति होती है। ___यह प्रश्न इस वास्ते पुच्छा गया है कि जीव अष्ट कर्मोका क्षय तों इस मृत्यु लोकमें ही कर देता है और विगर कोके हलन चलन कि क्रिया हो नही सक्ती है तो फीर सातराज उर्ध्व मोक्ष क्षेत्र तक गति करते है वह किस प्रयोगसे करते है ? इसके उत्तरमें शास्त्रकारोंने छे प्रकारकि गतिका खुलासा किया है। इति सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नम्बर ११. सूत्र श्री भगवतीजी शतक ७ उद्देशा १ .
(दुःखाधिकार ) (प्र०) हे भगवान् ! दुःखी है वह जीव दुःखकों स्पर्श