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शुकाके और मट्टीका लेप करे एसे आठ मट्टीका लेप करदेनेसे वह तूम्बा गुरुत्वको पाप्त हो जाता है फीर उस तूंबेकों पाणीपर रख देनेसे वह तुंबा पाणी के अधोभाग अर्थात् रसतलको पहुंच जाता है वह तूंना पाणीमे इधर उधर भटकनेसे किसी प्रकारके उपक्रम लगनेसे महोके लेप उतर जानेसे स्वयं ही पाणीके उपर भाजाता है इसी माफीक यह जीव स्वभावसे निर्लेप है परन्तु आठ कर्मोसे गुरूत्वको प्राप्तकर संसाररूपी समृद्रमें परिभ्रमण करता है । कबी सम्यग ज्ञानदर्शन चारित्ररूपी उपक्रमोंसे कम लेप दूर हो जानेसे निर्लेप हुवा तूना गति करता है इसी माफोक मकर्मी जीवकि भी गति होती है उस गतिको श स्त्रकारोंने
(१) “निरसंगयाए" कर्मोका संग रहित गति । (२) "निरंगणयाए" कषायरूपी रंग रहित गति ।
(३) "गइ परिणामेण" गति परिणाम अर्थात जीव कि स्वाभावे उर्ध्व जाने कि गति है। जेसे कारागृहसे छूटा हुवा मनुष्य अपना निनावसकों भानामें स्वाभावीक गति होती है इसी माफोक संसाररूपी कारागृहसे छूट जानेसे मोक्षरूपी निनावासमें जानेकि जीवकि स्वाभावीक गति है। ... (४) "वन्ध छेदन गति" जेसे मूंग मठ चावलादि कि फलो पूर्वबन्धी हुई होती है उस्कों आताप लगनेसे स्वयं फाटके अलग होजाती है इसी माफीक तपश्चर्यरूपी आताप लगनेसे कर्म अलग होते है और जीव बन्धन छेदनगति कर मोक्षमे चला जाता है।
() निरंधण गति" जेसे अग्नि इंधण न मीलनेसे शान्त हो जाती है एसे रागद्वेष तथा मोहनिय कर्मरूपी इंधणके भाभावसे