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(२३) है। इसी माफीक सूर्य उदय समय जीतने क्षेत्रमें प्रकाश करे उद्योत करे यावत ताप तपावे इतना ही क्षेत्रमें अस्त समय प्रकाश थावत् ताप करे है।
(अ) हे भगवान् । सूर्य प्रकाश करे है वह क्या स्पर्श क्षेत्रमें करते है या अस्पर्श क्षेत्रमें करते है ! पर्श किये हुवे क्षेत्रमें प्रकाश करते है वह नियमा छे दिशीमे प्रकाश करते है। ... (५) हे भगवान् । सुर्य क्या स्पर्श क्षेत्रको स्पर्श करते है या अस्पर्श क्षेत्रको स्पर्श करते है ? स्पर्श क्षेत्रको स्पर्श करते है किंतु अमर्श क्षेत्रको स्पर्श नही करते है। ... (प) हे भगवान । लोकका अन्त अलोकके अन्तसे स्पर्श किया हुवा है ? अलोकका अन्त लोकके अन्तको स्पर्श किया है ?
(3) हां गौतम, लोकका अन्त । मलोकके भन्टकों और अलौकका अन्त लोकके अन्तको स्पर्श किया हुआ है। वह मी सर्श किये हुवेको स्पर्श किया है वह भी निश्मा छे दिशोंके अन्दर सार्श किये है। ___(प्र) हे भगवान् । द्विपका अन्नकों सागरका अन्त स्पर्श किया है। सागरका अन्तकों द्वोपका अन्त स्पर्श किया है ? ..(उ) हां गौतम । पूर्ववत् यावत् नियमा छे दिशों में पर्श किया है एव जलान्तसे स्थलांत एवं स्त्रो छेद्र आदि बोलोंका
संयोग करना यावत् नियम छे दिशोंको स्पर्श किया है। ... (4) हे भगवान् । समुच्चय जीव अपेक्षा प्रश्न करते है कि
भविप्राणातिपातकि क्रिया करते है। - CS) हां गौतम । जीव प्रणातिपातकि क्रिया करते है।