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(७) दहान करना प्रारंभ किया उसे दाहान किया ही केहना।
(८) मरना प्रारंभ किया उसे मृत्यु हुवा ही केहना। (९).निर्जरा करना प्रारंभ किया उसे निरीया ही कहना।
इस नौ पदोंके उत्तरमें भगवान फरमाते है कि हां गौतम चलना प्रारंभ किया उसे चालीया यावत् निर्जरना प्रारंभ किया उसे निर्जरिया ही केहना चाहिये ।
भावार्थ-यह प्रश्न कर्मों कि अपेक्षा है । भात्माके प्रदेशोंके साथ समय समयमें कर्मबन्ध होते है व कर्म स्थिति परिपक्व होनेसे समय समय उदय होते है । आत्मप्रदेशोंसे कर्मोंका चळनकाल वह उदयावलिका है इन्ही दोनोंका काल असंख्यात समयका अन्तर महुर्त परिमाण है परन्तु चलन प्रारंभ समयकों चलीया कहना यह व्यवहार नयका मत है अगर चलन समयकों चलीया न माना जावे तो द्वितीयादि समय मी चलीया नहीं माना जावेगा, कारण प्रथम समय दुसरा समयमें कोई भी विशेषता नहीं है और प्रथम समयको न माना जाय तो प्रथम समयकि क्रिया निष्फल होगा जेसे कोइ पुरुष एक पटकों उत्पन्न करना चाहे तों प्रथम तन्तु प्रारंभकों बट मानणा ही पडेगा । अगर प्रथम तन्तुकों पट न माना जाय तो दुसरे तन्तुमें भी पटोत्पती नहीं है वास्ते वह सब क्रिया निष्फल होगा और पटोत्पतीकि भी नास्ति होगा। इसी माफीक आत्म प्रदेशोंसे कर्म दलक चलना प्रारंभ हुवा उस्कों चलीया ही मानना। शास्त्रकारोंका अमिष्ट है इस मन्यतास जमालीके मत्तका निराकार किया है।