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(९) लेश्या-कृष्ण निक कापोत तेजोलश्यावाले बहुत । . (१०) दृष्टी-मिथ्यादृष्टी नीव बहुत है। (११) ज्ञान नहीं, अज्ञानी बीव बहुत हैं। (१२) योग-कायाके योगवाले बहुत है। (११) उपयोग-साकार अनाकार उप०वाले बहुत । (११) वर्णादि-जीवापेक्षावर्णादि नहीं है,शरीरापेक्षा वर्णादिहै। (१५) उश्वासगा-उश्वास नि० नोउश्वा० नि० के बहुत है। (१६) आहार-आहारीक अनाहारीक बहुत है। (१७) व्रती-सर्व जीव अवती है। (१८) क्रिया-सर्व जीव सक्रिया है। (१९) बन्ध-सातकर्म बन्धनेवाले. महत आठ० बहुत है। (२०) संज्ञा-च्यारों संज्ञावाले बहुत बहुत है। (२१) कषाय-च्यारों कषायवाले "" (११) वेद-नपुंसक वेदवाले बहुत । (२३) क्धक-तीनों वेदके बन्धक बहुत बहुत है। (२४) संज्ञो-सर्व जीव असंज्ञी है। (२५) इन्द्रिय-सर्व जीब इन्द्रिय सहित है। (२६) अनुबन्ध-ज० एक समय उ० अनन्तकाल
तीर्यचके ४६ मनुष्यके ३ देवतोंके २५ एवं ७४ देखों इकेन्द्रियकि आगति
१ एक समय जीवकि स्थिति अनुवन्ध नही किन्तु महायुम्म कि रास रेहने अपेक्षा हैं कारण जीव समय समय उत्पन्न होते है चवते भी है।