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१४४ , , , दाक्षण. ... ,. १४४ , , , पश्चम . " .... १४४ ,, . , उत्तर... ", " १४४ पश्चन ४४ , , ..., दक्षिण
... !, पश्चर ,
" उत्तर
, , पूर्व , १४४ ,, ,, दक्षिण , १४४ , , , पश्चर , १४१ ,, , , उत्तर , · एवं १४४ को १६ गुणा करनेसे १३०४ मांगा होते है तथा १२००० पूर्वके मोटानेसे यहांतक १४३०१ पांगा हुवे ।
च स्थावरके २० भेदों कि समुदवात उत्पात और स्थान देखो शीघ्रब ध म ग १२ वां स्थानपदके थोकडे देखो।
एकेन्द्रिक १० भेद है जिस्के आठ कर्मों के सत्ता, बन्न सात आठ कर्मों का और चौदा प्रकृतिको वेदते है । एकेन्द्रिकि आगति ७४ स्थानकि है ४६ तीर्थच, तीन मनुष्य, पत्रवीत देवता एकेन्द्रियके च्यार सम्द्वात क्रमःसर है।
एकेन्द्रिय च्यार प्रकार के है। (१) समस्थिति सम कर्मवाले। (२) समस्थिति विषम कर्माले । (३) विषम स्थिति सम कर्मशाले। .....