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थोकडा नम्बर २ ....सूत्र श्री भागवतीजी शतक २२
(वर्ग छे) इस बावीसवां शतकके छे वर्ग है प्रत्येक वर्गके दश दश उदेशा होनसे साइ उदेशा होते है । यथा
(१) ताल तम्बालादि वृक्षका वर्ग (२) एक फलमें एक बोन अम्र हाडे निंब आदिके वर्ग (१) एक फलमें बहुत बीन आत्थीया वृक्ष तंडुक वृक्ष बद(४) गुच्छा वृन्ताकि आदिका वर्ग। [रिक वृक्षादि । (५) गुल्म-नवमालतो आदिका वर्ग (६) वेलि-पुंफली, कालिंगी, तुम्बीदि वर्ग
इस छे वर्गसे प्रथम तालतम्बालादि वृक्षके मूल, कन्द, स्कन्ध, स्वचा, साखा, यह पांच उदेशा शाली वर्गात कारण इस पार्यों उदेशोंमें देवता उत्पन्न नहीं होते है। देश्या तीन मांगा २६ होते है। स्थिति ज० अन्तर महू उ० दशहमार वर्षांकि है। शेष परिवाल, पत्र, पुष्प, फ, बीन इस पांच उदेशोमें देवता भाके उत्पन्न होते है, लेश्या चार मागा ( होते है। और स्थिति R० बन्तर महुर्त उ० प्रत्यक वर्ष की है। अवगाहाना मधन्य अंगुलके असंख्यातमें पाग है उत्कृष्टी मूळ कन्दकि प्रत्यक धनुष्यकि, स्कन्ध, त्वचा, साखा, कि प्रत्यक गाउ० परवाल, पत्र, कि प्रत्यक धनुष्यकि, पुष्पोंकि प्रत्यक हाथ, फल, बीन कि प्रत्यक 'अंगुलकि है. शेष अधिकार शाली वर्ग माफीक सझना ।
दनि रोका।