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(४) अवमाहाना जघन्य अंगुलके असंख्यातमें भागं उ०
१००० जोजनवाला यद्यपि अंगुलके असंख्यातमें भागवाला नरकमें नहीं जाता है परन्तु यहां पर सर्व भवापेक्षा है कि तीर्थंचके भवमें इतनि आवगाहाना होती है एवं सर्वत्र समझना ।
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(५) संस्थान एक हुडकवाला ।
(६) लेश्या = कृष्ण निल कापोतवाला - रत्नप्रभा में जानेवालेके लेश्या एक कापोत होती है परन्तु यह भी पूर्ववत् सर्वभवापेक्षा है ।
(७) दृष्टी - एक मिथ्यात्व वाला |
(८) ज्ञान - ज्ञान नहीं किन्तु दोय अज्ञान वाला । (९) योग - वचन और कायावाला ।
(१०) उपयोग - साकार और अनाकार ।
(११) संज्ञा - महारादिक च्यारोंवाला । (१२) कषाय - क्रोध मान माया लोभ च्यारोवाला | (१३) इन्द्रिय- श्रोतेन्द्रियादि पांचो इन्द्रियवाला | (१४) समुद्घात - वेदनी कषाय मरणन्तिक तीनों । (१५) वेदना - साता असाता दोनोंवाला ।
(१६) वेद - एक नपुंसक वेदवाला । (१७) स्थिति - ज० अन्तर महुर्ब उ० पूर्वकोड वाला | (१८) अध्यवसाय - असंख्याते सो प्रस्थ अप्रसस्थ । (१९) अनुबन्ध - ज० अन्तर महुर्त उ० पूर्व कोडका । (२०) संभहो - भवादेशेणं जधन्य दोयभव उ० दोयभव